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________________ नय- रहस्य अध्यात्म शैली में मुख्यतया निश्चय - व्यवहारनयों का वर्णन होता है। नयचक्र' आलापपद्धति' और वृहद्द्रव्यसंग्रह' की टीका में अध्यात्म नयों का वर्णन करते हुए दो प्रकार के निश्चयनय तथा चार प्रकार के व्यवहारनय बताए गए हैं, जो इसप्रकार हैं अध्यात्मनय 212 निश्चयनय 1. शुद्ध - निश्चयनय -- 2. अशुद्ध - निश्चयनय व्यवहारनय सद्भूतव्यवहारनय असद्भूत - व्यवहारनय 3. शुद्धसद्भूत- 4.अशुद्धसद्भूत - 5. अनुपचरितअसद्भूत 6. उपचरितव्यवहारनय व्यवहारनय असद्भूतव्यवहारनय व्यवहार अबे अध्यात्मभाषा से नयों के लक्षण कहते हैं. सर्व जीव शुद्ध-बुद्ध - एक स्वभाववाले हैं - यह शुद्धेनिश्चयनय का लक्षण है। रागादि ही जीव है - यह अशुद्धनिश्चयनय का लक्षण है। और गुणी में अभेद होने पर भी भेद का उपचार करना गुण यह सद्भूतव्यवहारनय का लक्षण है। जीव के केवलज्ञानादि गुण है - यह अनुपचरित-शुद्ध- सद्भूतव्यवहारनय का लक्षण है। जीव के मतिज्ञानादि विभावगुण हैं - यह उपचरित - अशुद्ध- सद्भूतव्यवहारनय का लक्षण है। संश्लेष सम्बन्ध वाले पदार्थों में शरीरादि मेरे हैं - यह अनुपचरितअसद्भूतव्यवहारनय का लक्षण है तथा जहाँ संश्लेष सम्बन्ध नहीं है, वहाँ पुत्रादि मेरे हैं - यह उपचरित - असद्भूतव्यवहारनय का लक्षण है। इसप्रकार नयचक्र के मूलभूत छह नय संक्षेप में जानने चाहिए। उक्त सम्पूर्ण नयों की विषय-वस्तु बताते समय आत्मा को सामने 1. देवसेनाचार्यकृत श्रुतभवनदीपक नयचक्र, पृष्ठ 25-26 2. आलापपद्धति, पृष्ठ 228 3. वृंहद्द्रव्यसंग्रह, गाथा 3 - -
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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