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________________ नयों के सन्दर्भ में : आगम और अध्यात्म 209 होनेवाला ‘घी' है। आगम यदि एक विशाल राष्ट्र है तो अध्यात्म उसमें स्थित हमारा स्वयं का आवास-स्थल है। आगम और अध्यात्म परस्पर विरोधी नहीं, अपितु एक-दूसरे के पूरक हैं। यहाँ कुछ प्रश्नोत्तरों के माध्यम से आगम और अध्यात्म सम्बन्धी विशेष स्पष्टीकरण किया जा रहा है - प्रश्न 1 - आगम और अध्यात्म दोनों आत्महित में उपयोगी हैं तो दोनों की प्रतिपादन शैली परस्पर विरुद्ध क्यों है? उत्तर - भाई! दोनों की अपेक्षा और प्रयोजन न समझने से ही हमें उनमें विरोध दिखाई देता है। यदि उसकी अपेक्षा समझ ली जाए तो उनमें विरोध नहीं, परस्पर पूरकता दिखने लगेगी। जब किसी विद्यालय के छात्रों को नक्शे के माध्यम से भारत की सड़कों और रेलमार्ग का ज्ञान कराना हो तो विस्तार से समझाना पड़ता है। वहाँ किस रास्ते से जाना और किस रास्ते से नहीं जाना अर्थात् वहाँ हेय-उपादेय का प्रयोजन नहीं है, मात्र जानने का प्रयोजन हैं, लेकिन जब किसी राहगीर को रास्ता बताना हो तो उसके अभीष्ट रास्ते का विस्तृत ज्ञान कराया जाता है, उस समय अन्य रास्तों की बात करने का प्रयोजन नहीं होता। . . इसीप्रकार आगम महासागर है, अतः उसमें विश्व के समस्त पदार्थों का स्वरूप, परस्पर-सम्बन्ध, परिणमन-व्यवस्था तीन लोक आदि सभी बातों का वर्णन होता है और अध्यात्म वह गागर है, जिसमें उस महासागर का शुद्धात्मरूपी जल भरा है, जो हमारी चिर-पिपासा को शान्त करेगा। यद्यपि अध्यात्म, आगम का ही अंश है; तथापि यदि भारत जैसे विशाल राष्ट्र के एक प्रान्त को महाराष्ट्र कहा जा सकता है तो द्वादशांगरूपी आगम के प्रयोजनभूत प्रकरण को अध्यात्म या परमागम क्यों नहीं कहा जा सकता?
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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