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नयों के सन्दर्भ में : आगम और अध्यात्म
षट्खण्डागम, गोम्मटसारादि ग्रन्थों को ‘आगम ग्रन्थ' तथा समयसारादि परमागम ग्रन्थों को 'अध्यात्म ग्रन्थ' कहा जाता है। आगम ग्रन्थों में अशुद्धनिश्चयनय अथवा व्यवहारनय की मुख्यता से अथवा द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिकनय की मुख्यता से जीव की संसार अवस्था अथवा वस्तुस्वरूप प्रतिपादक त्रिलोकादि का वर्णन किया जाता है। चरणानुयोग के ग्रन्थों को भी आगम ग्रन्थों में सम्मिलित किया जाता है। जबकि अध्यात्म ग्रन्थों में शुद्धनिश्चयनय से आत्मा का स्वरूप बताकर, आत्मानुभूति की प्रक्रिया स्पष्ट करते हुए उसकी प्रेरणा दी जाती है, क्योंकि कहा है - अनुभव मारग मोक्ष को, अनुभव मोक्ष-स्वरूप।
जिनागम की उक्त दोनों धाराओं की विषय-वस्तु और शैली में भिन्नता होने से दुर्भाग्यवश इन दोनों को परस्पर विरोधी समझकर किसी एक शैली का ऐकान्तिक आग्रह हो जाता है। अध्यात्म-रसिक लोगों को दूसरा पक्ष एकान्त निश्चयवाले कहता है तो आगमाभ्यासी लोगों को अपरपक्ष द्वारा व्यवहार पक्षवाला कहा जाता है; अतः आगम और अध्यात्म के स्वरूप को गहराई से समझना अत्यन्त आवश्यक है।
वस्तु-स्थिति यह है कि आगम की ठोस नींव पर ही अध्यात्म का भव्य महल बनता है। आगम के विशाल वृक्ष में ही अध्यात्म के फल लगते हैं। ‘आगम' यदि ‘दूध' है तो 'अध्यात्म' उससे प्राप्त