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________________ पंचाध्यायी में समागत व्यवहारनय के भेद-प्रभेद एवं नयाभास - 207 3. क्षुल्लक धर्मदासजी कृत स्वात्मानुभव मनन में आत्मा को सातवाँ द्रव्य या दसवाँ पदार्थ कहकर, समस्त परद्रव्यों और परभावों से भिन्न बताया गया है। ____4. नियमसार, गाथा 50 में क्षायिक आदि भावों को भी परद्रव्य कहकर, हेय बताते हुए उनसे दृष्टि हटाकर, अनादि-निधन शुद्ध पारिणामिकभाव का अवलम्बन करने की प्रेरणा दी गई है। ___ इसप्रकार ऐसे अनेक कथन अध्यात्म ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं, जिन पर गहन विचार करके, उनका मर्म समझना चाहिए। मात्र सैद्धान्तिक ऊहापोह से इनका मर्म नहीं समझा जा सकता। जब हमें स्वयं स्वभाव की महिमा उछलेगी, आत्मानुभूति की लगन लगेगी, तभी हमें ऐसे कथनों का मर्म यथार्थ भासित होगा। उपर्युक्त दोनों शैलियों के माध्यम से आत्मा का स्वरूप समझकर, समस्त परद्रव्यों और परभावों से भिन्न शुद्ध चैतन्यतत्त्व की अनुभूति का पावन पुरुषार्थ प्रगट करना ही हम सबके लिए श्रेयस्कर है। अभ्यास-प्रश्न 1. प्रथम और द्वितीय शैली में प्रयुक्त व्यवहारनय के भेद-प्रभेदों की तुलनात्मक विवेचना कीजिए। 2. पंचाध्यायीकार द्वारा कहे गए चार नयाभासों का स्वरूप बताते हुए सिद्ध - कीजिए कि इन्हें नयाभास क्यों कहा गया है? 3. प्रथम शैली में प्रयुक्त असद्भूतव्यवहारनय को द्वितीय शैली में नयाभास क्यों कहा गया है? पंचाध्यायीकार के पक्ष में अपने तर्क प्रस्तुत कीजिए?
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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