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________________ नय- रहस्य प्रथम शैली के पक्ष में तर्क - देह और आत्मा का संयोग सर्वथा काल्पनिक या असत् नहीं है। इन्हें सर्वथा असत् मानने पर नरनारकादि पर्यायरूप चार गतियाँ अर्थात् संसार ही सिद्ध न होगा और संसार के सिद्ध न होने पर मोक्ष और मोक्षमार्ग भी सिद्ध न होगा। देह और आत्मा के संयोगरूप त्रस - स्थावर जीवों को किसी भी अपेक्षा जीव न मानने पर जीव-हिंसा का निषेध किस नय से होगा ? 202 इसीप्रकार मकानादि के स्वामित्व का व्यवहार, सम्यग्ज्ञानियों में भी होता है। जो घड़ा बनाए, वह कुम्हार तथा जो स्वर्ण के गहने बनाए, वह सुनार - ऐसा व्यवहार करते हुए ज्ञानी भी देखे जाते हैं। इसप्रकार आत्मा और पर - पदार्थों का वर्तमान पर्यायगत संयोग सम्बन्ध तथा निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध सर्वथा असत् न होने से कथंचित् सत् हैं, अतः वे किसी न किसी नय का विषय अवश्य बनेंगे और वह नय भी सम्यग्ज्ञान का अंश होगा; अन्यथा प्रथमानुयोग, करणानुयोग और चरणानुयोग के सभी कथन मिथ्या सिद्ध होंगे। द्वितीय शैली के पक्ष में तर्क - देह और आत्मा के संयोग के आधार से उन्हें एक मानने से देह में एकत्व - बुद्धिरूप मिथ्यात्व ही पुष्ट होता है। अनादिकाल से यह जीव, देह को ही तो आत्मा मान रहा है और यदि जिनागम के असद्भूतव्यवहारनय से भी यही मान्यता पुष्ट हुई तो इन नयों का प्रयोग भी मिथ्या होगा, क्योंकि अज्ञानी को नय नहीं, नयाभास होता है। मकानादि के स्वामित्व सम्बन्धी या कुम्हार - सुनार सम्बन्धी बातें लोक व्यवहार की बातें हैं । यह व्यवहार, नयाभासों से ही चल जाएगा। लोक व्यवहार में तो लौकिक प्रयोजन की मुख्यता होती है। वहाँ नय और नयाभास की कोई भूमिका नहीं होती ।
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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