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नय - रहस्य
उक्त विवेचन के अनुसार व्यवहारनय के चार भेदों के प्रयोगों की अपेक्षा प्रथम शैली और द्वितीय शैली के अन्तर को जानने के लिए उनका तुलनात्मक अध्ययन निम्न तालिका के माध्यम से किया जा सकता है.
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नय प्रथम शैली का प्रयोग
द्वितीय शैली का प्रयोग 1. उपचरित आत्मा स्त्री, पुत्र, मकान बुद्धिपूर्वक रागादि आत्मा असद्भूत आदि का स्वामी/कर्ता है । के हैं।
व्यवहारनय
2. अनुपचरित | आत्मा आठ कर्मों का अबुद्धि-पूर्वक रागादि असद्भूत कर्ता / भोक्ता है अथवा आत्मा के हैं। व्यवहारनय शरीर का अधिष्ठाता है।
3. उपचरित
आत्मा क्रोधादि विकारी ज्ञान अर्थ विकल्पात्मक भावों का कर्ता / भोक्ता अर्थात् ज्ञेयाकाररूप है।
सद्भूत व्यवहारनय है |
4. अनुपचरित आत्मा केवलज्ञानादि शुद्ध आत्मा में ज्ञानादि अनन्त सद्भूत पर्यायों का कर्ता है अथवा शक्तियाँ हैं। व्यवहारनय | ज्ञान-दर्शन लक्षण वाला
है।
नयचक्र, आलापपद्धति और अनगार धर्मामृत आदि ग्रन्थों के आधार पर निरूपित व्यवहारनय के भेद - प्रभेदों और पंचाध्यायी में निरूपित व्यवहारनय के भेद - प्रभेदों पर जब हम तुलनात्मक दृष्टि डालते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि पंचाध्यायीकार ने अन्यत्र निरूपित शुद्ध- सद्भूत, अशुद्ध- सद्भूतव्यवहारनय के विषयों को शुद्ध