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________________ पंचाध्यायी में समागत व्यवहारनय के भेद-प्रभेद एवं नयाभास व्यवहारनय के भेद-प्रभेदों की विषय-वस्तु तथा उनके विभिन्न प्रयोगों पर विचार करने के पश्चात् पंचाध्यायी ग्रन्थ में समागत व्यवहारनय के भेद-प्रभेदों पर चर्चा करना भी आवश्यक है, क्योंकि इसमें वर्णित विषय-वस्तु में कुछ भिन्नता पाई जाती है, जिस पर गम्भीर चिन्तन करने से नय-प्रयोगों के विशेष रहस्य खुलने का अवसर है। - आचार्य कुन्दकुन्द विरचित समयसार से लेकर पण्डितप्रवर दौलतरामजी कृत छहढाला तक सम्पूर्ण शासन-परम्परा में व्यवहारमय के चार भेदों की विषय-वस्तु में कोई अन्तर नहीं है, मात्र पाण्डे राजमलजी कृत पंचाध्यायी में असद्भूतव्यवहारनय की विषय-वस्तु में भिन्न शैली अपनाई गई है। इन दोनों शैलियों में अन्तर और उसके प्रयोजन पर विचार करने से नयों का रहस्य भलीभाँति जाना जा सकेगा। इन दोनों शैलियों का बार-बार उल्लेख करने में सरलता रहे, अतः प्रचलित परम्परागत शैली को प्रथम शैली तथा पंचाध्यायी में प्रयुक्त शैली को द्वितीय शैली कहकर सम्बोधित करना ठीक रहेगा। ध्यान रहे कि निश्चयनय के भेद-प्रभेदों के प्रकरण में भी द्वितीय शैली का दृष्टिकोण अलग ही है। पंचाध्यायी में विषय-वस्तु तथा निषेधक लक्षण के आधार पर निश्चयनय को अभेद्य अखण्ड तथा एक मानते हुए उसके भेद करने का कठोरता से निषेध किया गया है। इस
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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