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________________ 190 नय-रहस्य इसप्रकार व्यवहारनय के भेद-प्रभेदों को जानना भी वस्तुस्वरूप का निर्णय करने में अत्यन्त उपयोगी है, अतः इनका स्वरूप जानकर परमार्थ-दृष्टि प्रगट करने का उपाय करना ही श्रेयस्कर है। अभ्यास-प्रश्न . . - 1. लौकिक विश्व-व्यवस्था का उदाहरण देते हुए अलौकिक विश्व-व्यवस्था .. का स्वरूप और उसमें व्यवहारनय के भेदों के प्रयोग स्पष्ट कीजिए। 2. कार्यालय की व्यवस्था का उदाहरण देते हुए व्यवहारनय के चार भेदों की कथंचित् सत्यार्थता प्रतिपादित कीजिए। 3. यदि व्यवहारनय के भेद न किये जाएँ तो क्या हानि है? स्पष्ट कीजिए। 4. ज्ञान-ज्ञेय सम्बन्ध को असद्भूत कहने का आशय स्पष्ट करते हुए ज्ञान ज्ञेय के वास्तविक स्वरूप पर प्रकाश डालिए। 5. अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय के नौ भेद और उपचरित-असद्भूत व्यवहारनय के छह भेदों के नाम और प्रयोग लिखिए। वे सिद्ध प्रभु व्यवहारनय से, ज्ञान के घनपुंज हैं। त्रिभुवन शिखर की शिखा के, चूडामणि घनरूप हैं।। वे देव निश्चय से सहज, चैतन्य चिन्तामणि परम। निज नित्य स्वरूप में ही, वास करते हैं स्वयं।। - नियमसार कलश, 101
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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