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व्यवहारनय के भेद-प्रभेद उपनय है। तात्पर्य यह है कि व्यवहारनय ही उपनय है, क्योंकि व्यवहारनय के भेद-प्रभेद और उपनय के भेद-प्रभेद एक ही प्रकार के हैं। .. आचार्य देवसेन एवं माइल्ल धवल कृत दोनों नयचक्रों में नयों के दो भेद किये हैं - नय और उपनय। इनके भेद-प्रभेद, निम्न तालिका द्वारा अच्छी तरह समझे जा सकते हैं -
नय
नय
उपनय
मूलनय
उत्तरनय
सद्भूत
असद्भूतव्यवहारनय
1. द्रव्यार्थिक 1, नैगम शुद्ध-सद्भूतव्यवहारनय 2. पर्यार्याथिक. 2. संग्रह अशुद्ध-सद्भूतव्यवहारनय 3. व्यवहार
उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय 4. ऋजूसूत्र - अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय 5. शब्द 6. समभिरूढ़
7. एवंभूत उक्त तालिका में दर्शाये गये उपनय के भेदों को ही व्यवहारनय के चार भेदों के रूप में बताया जाता है। असद्भूतव्यवहारनय के विषयभूत अनेक प्रकार के सम्बन्ध
आलापपद्धति, पृष्ठ 227 पर असद्भूतव्यवहारनय के विषयभूत सम्बन्धों का स्पष्टीकरण करते हुए कहा है -
यही असद्भूतव्यवहारनय भिन्न द्रव्यों, उनके गुणों और पर्यायों