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________________ 182 नय - रहस्य के साले, साले के साले या बहनोई के बहनोई आदि रिश्तेदारों के रिश्तेदार हैं। इसीप्रकार आठ कर्म और शरीर से हमारा सीधा सम्बन्ध होने से आत्मा और इनके संयोग को जाननेवाला ज्ञान, अनुपचरितअसद्भूतंव्यवहारनय है तथा माता-पिता, भाई-बहन, धन-सम्पत्ति आदि से हमारा सम्बन्ध देह तथा कर्मों के माध्यम से है; अतः उनसे हमारा सम्बन्ध, उपचरित - असद्भूतव्यवहारनय का विषय है। इसप्रकार जब मात्र उपचरित कथन हो तो अनुपचरित - असद्भूतव्यवहारनय और जब उपचार में भी उपचार किया जाए तो उपचरित - असद्भूतव्यवहारनय का प्रयोग समझना चाहिए । उपचार में भी उपचार से भिन्नता बताने के लिए अर्थात् अत्यन्त निकटवर्ती सम्बन्ध बताने के लिए अनुपचरित शब्द का प्रयोग किया जाता है। नय और उपनय - श्रुतभवनदीपक नयचक्र, पृष्ठ 20 पर व्यवहार का जनक, उपनय को बताते हुए कहा है - " व्यवहारनय, उपनय से उपजनित होता है। प्रमाण-नयनिक्षेपात्मक, भेद और उपचार के द्वारा जो वस्तु का प्रतिपादन करता है, वह व्यवहारनय है। प्रश्न - व्यवहार का जनक उपनय कैसे है ? उत्तर - सद्भूतव्यवहारनय, भेद का उत्पादक होने से, असद्भूतव्यवहारनय, उपचार का उत्पादक होने से और उपचरित - असद्भूत - व्यवहारनय, उपचार में भी उपचार का उत्पादक होने से उपनयजनित हैं। ' प्रश्न उपनय किसे कहते है ? 99 उत्तर - श्रुतभवनदीपक नयचक्र में उपनय की परिभाषा पृष्ठ 59 पर इसप्रकार बताई गई हैं जो आत्मा अथवा प्रमाणादि के अत्यन्त निकट पहुँचता है, वह
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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