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नय-रहस्य ... 5. पर-संयोगी अशुद्ध भावों का जीव के साथ स्थायी सम्बन्ध नहीं है तथा ये स्वभाव से विरुद्ध भाव हैं, अतः उन्हें उपचरितभाव कहना उचित है। असद्भूतव्यवहारनय के विभिन्न प्रयोग
यहाँ विशेष ज्ञातव्य है कि पंचाध्यायीकार ने असद्भूतव्यवहारनय की विषय-वस्तु के अन्तर्गत अलग प्रयोग किये हैं, जिनकी विस्तृत मीमांसा, आगामी अध्याय में की जाएगी। - प्रश्न - क्या असद्भूतव्यवहारनय के प्रयोगों में भी भिन्नता पाई जाती है? -
उत्तर - असद्भूतव्यवहारनय, विभिन्न द्रव्यों के साथ विभिन्न प्रकार के सम्बन्ध स्थापित करता है, इसलिए उसका क्षेत्र बहुत बड़ा है। द्रव्य अनन्तानन्त हैं और उनमें सम्बन्ध भी अनेक प्रकार के हैं, अतः इस नय का विषय असीमित है।
जब दो या दो से अधिक द्रव्यों के बीच सम्बन्ध स्थापित करने की बात आती है, तब यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि द्रव्य सजातीय हैं या विजातीय, निकटवर्ती हैं या दूरवर्ती? तथा उनमें स्व-स्वामी, कर्ता-कर्म, भोक्ता-भोग्य, ज्ञाता-ज्ञेय आदि सम्बन्धों में से कौन-सा सम्बन्ध स्थापित किया जा रहा है।
अनन्तान्त द्रव्यों के सजातीय, विजातीय और उभय द्रव्यों के रूप में तीन भेद किये जाते हैं तथा इनमें विभिन्न सम्बन्धों के आधार पर नौ प्रकार का उपचार करना, असद्भूतव्यवहारनय का विषय है।
प्रश्न - एक ही वस्तु में गुण-पर्याय का भेद करना, वास्तविक है या उपचरित है?
उत्तर - आत्मा के अनन्त धर्मों में अभेद और भेद नामक धर्म