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________________ नय - रहस्य सद्भूतव्यवहारनय का कथन कहा गया है। क्या इस नय के प्रयोगों में विभिन्नतां भी होती है ? 178 उत्तर - गुण-गुणी अथवा पर्याय पर्यायी के भेद के आधार से सद्भूतव्यवहारनय के भी बहुत से प्रयोग, आगम में उपलब्ध होते हैं। पर्यायों का जितने प्रकार से वर्गीकरण किया जाएगा, उतने ही प्रयोग सद्भूतव्यवहारनय के हो जाएँगे । नय-दर्पण, पृष्ठ 668-669 पर क्षुल्लक श्री जिनेन्द्र वर्णी ने सामान्य द्रव्य और विशेष द्रव्यों में गुण-पर्यायों का भेद करते हुए शुद्ध सद्भूत - व्यवहारनय के विभिन्न प्रयोगों का वर्णन किया है, जो इसप्रकार है 1. शुद्ध - ( अनुपचरित) - सद्भूतव्यवहारनय के विभिन्न प्रयोग - 1. सामान्य द्रव्य (जीवमात्र में) या शुद्ध द्रव्य (सिद्ध भगवान) में गुण-गुणी का भेद करके जीव को ज्ञानगुण वाला कहना । गुण, त्रिकाली सामान्य भावरूप होता है, अतः वह शुद्ध - अशुद्धपर्यायों से निरपेक्ष होता है। 2. शुद्धपर्यायें दो प्रकार की हैं - सामान्य और विशेष । प्रतिक्षणवर्ती गुणी हानि - वृद्धिरूप सूक्ष्म अर्थपर्याय सामान्य शुद्धपर्याय है और केवलज्ञानादि क्षायिकभाव विशेष शुद्धपर्यायें हैं; अतः जीव षट्गुणी हानि-वृद्धिरूप स्वाभाविक सामान्य पर्यायवाला है - ऐसा कहना, द्रव्य सामान्य में पर्याय- पर्यायी का भेद कथनरूप शुद्ध - (अनुपचरित) - सद्भूतव्यवहारनय का कथन है। 3. जीव, केवलज्ञान - दर्शनवान् या वीतरागतावान् है - ऐसा कहना, द्रव्य सामान्य में शुद्ध गुण-गुणी और शुद्ध पर्याय- पर्यायी का भेद - कथन करनेवाला शुद्ध- सद्भूतव्यवहारनय है। 4. सिद्ध भगवान, केवलज्ञान दर्शन वाले या वीतरागता वाले हैं
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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