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व्यवहारनय के भेद-प्रभेद
___167.. विभागीय अधिकारी का तथा विभागीय अधिकारी को सर्वोच्च अधिकारी के आदेश मानना होता है, वे अपने उच्चाधिकारी को आदेश नहीं दे सकते। सर्वोच्च अधिकारी की बात को कोई टाल नहीं सकता, परन्तु वह स्वयं अपने निर्णयों को बदल सकता है। यही स्थिति व्यवहारनय के चार भेदों की है।
उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय यद्यपि सबसे स्थूल व्यवहार है, तथापि लौकिक व्यवस्था में वही बलवान है। उसका उल्लंघन लौकिक दृष्टि से भी अपराध माना जाता है। यह मकान मेरा है, स्त्री-पुत्रादि मेरे . हैं - ऐसा कहनेवाले उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय के आधार से ही प्रत्येक व्यक्ति की अपनी सम्पत्ति, रिश्ते नाते, कर्तव्य और अधिकार आदि सुनिश्चित होते हैं। यदि इसका वजन स्वीकार न किया जाए तो सारी लौकिक व्यवस्था भी छिन्न-भिन्न हो जाएगी। न केवल लौकिक व्यवस्था, अपितु पंचेन्द्रिय विषयों के ग्रहण-त्याग का कथन करनेवाला चरणानुयोग और 63 श्लाका पुरुषों के अनेक भवों का वर्णन करनेवाले प्रथमानुयोग का आधार भी समाप्त हो जाएगा।
उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय के कथनों में लौकिक, नैतिक, धार्मिक और पौराणिक यथार्थता होने पर भी अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय के कथनों का वजन अधिक होने से उसके सामने वह फीका हो जाता है। हम देह के साथ जैसा अपनापन अनुभव करते हैं, वैसा मकान आदि में नहीं। मकान में आग लगने पर यदि सुरक्षित बाहर निकल आएँ तो अपने को बहुत भाग्यशाली समझते हैं। इसीप्रकार द्रव्य-कर्मों के साथ जैसा पक्का निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है, वैसा स्त्री-पुत्रादि के साथ नहीं। साता वेदनीय का उदय होने पर सभी अनुकूल नोकर्म अच्छे लगते हैं तथा असाता वेदनीय का उदय होने पर वे ही प्रतिकूल नोकर्म बुरे लगने लगते हैं।