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व्यवहारनय के भेद-प्रभेद
6. उक्त भेद, दो देशों में विद्यमान अत्यन्त भिन्नता जैसे न होने पर भी सर्वथा काल्पनिक नहीं होते।
7. दो देशों की विभाजन रेखा, उनमें परस्पर अत्यन्त अभावरूप है। प्रत्येक के सुख-दुःख, लाभहानि, समृद्धि, सुरक्षा, हितअहित, समस्याएँ आदि सभी अलग-अलग हैं, परन्तु एक देश के विभिन्न प्रान्तों, जिलों आदि के लाभ-हानि सम्मिलित होते हैं; इसलिए ये भेद, वास्तविक नहीं हैं, काल्पनिक हैं; परन्तु हैं अवश्य, इनका सर्वथा निषेध
करना भी यथार्थ नहीं है। 8. यद्यपि प्रत्येक देश स्वतन्त्र और निरपेक्ष है, उसे किसी अन्य देश का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं है, तथापि उसके अन्य राष्ट्रों से कोई सम्बन्ध न हों - ऐसा भी नहीं है। परस्पर-सहयोग, सन्धि, व्यापार, आवागमन आदि के बिना कोई राष्ट्र नहीं रह सकता।
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6. एक द्रव्य के अन्तर्गत किये गये अनेकप्रकार के भेद दो द्रव्यों की अत्यन्त भिन्नता जैसे न होने पर भी सर्वथा काल्पनिक नहीं होते ।
7. दो द्रव्यों में अत्यन्त अभाव होता है। प्रत्येक के गुण-धर्मपर्याय आदि परस्पर निरपेक्ष और स्वतन्त्र होते हैं (भले ही समानजातीय अनन्त द्रव्यों के गुणधर्म समान हैं।) किन्तु एक द्रव्य में किये गये भेद, सर्वथा स्वतन्त्र नहीं होते; अतः वे वास्तविक नहीं हैं; परन्तु हैं - अवश्य, उनके परस्पर अभाव को अतद्भाव कहते हैं।
8.
कोई द्रव्य किसी अन्य द्रव्य का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करता, परन्तु उसका भिन्न द्रव्यों के साथ सम्बन्धों का सर्वथा अभाव भी नहीं है; उनमें व्यवहारनय से परस्पर निमित्तनैमित्तिक आदि अनेक सम्बन्ध जिनागम तथा लोक में भी स्वीकार किये गये हैं।