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________________ . व्यवहारनय के भेद - प्रभेद 161 सद्भूतव्यवहारनय का कथन है, परन्तु शुभराग को मोक्षमार्ग कहना, व्यवहारनय के किस भेद में जाता है ? उत्तर मोक्षमार्ग और शुभराग दोनों जीव की पर्यायें हैं, अतः शुभराग पर मोक्षमार्ग का आरोप करना, उपचरितव्यवहार है तथा शुभराग मोक्षमार्ग का निमित्त है, अतः उसे उपचरित - सद्भूतव्यवहारनय कहना अधिक उचित है, क्योंकि साधकदशा में वह परिणाम उत्पन्न हुए बिना नहीं रहता। - निश्चय-व्यवहार के प्रयोगों में यही बात ध्यान देने योग्य है कि वह कथन, प्रतिपादन कर रहा है या निषेध कर रहा है। यह जानना भी आवश्यक है कि किसका प्रतिपादन किया जा रहा है या किसका निषेध किया जा रहा है और क्यों ? अर्थात् किस प्रयोजन से किया जा रहा है। इसी आधार पर यह निश्चित किया होता है कि यह कथन निश्चयनय अथवा व्यवहारनय के किस भेद-प्रभेद के अन्तर्गत आता है। व्यवहारनय के चार भेदों की प्रतिपादन शैली परमभावप्रकाशक नयचक्र में एक स्वतन्त्र सम्प्रभुता - सम्पन्न राष्ट्र का अन्य देशों के साथ व्यावहारिक सम्बन्ध के आधार पर असद्भूतव्यवहारनय की और उसकी आन्तरिक व्यवस्था के आधार पर सद्भूतव्यवहारनय की प्रतिपादन शैली को विश्व - व्यवस्था पर घटित किया गया है। ' यहाँ इस विवेचन को अनेक बिन्दुओं के आधार पर तुलनात्मक शैली में प्रस्तुत किया जा रहा है -- लौकिक विश्व - व्यवस्था 1. लौकिक विश्व, सम्प्रभुता सम्पन्न अनेक देशों का समुदाय 1. परमभावप्रकाशक नयचक्र, पृष्ठ 118 से 121 अलौकिक विश्व - व्यवस्था 1. अलौकिक विश्व, जीवादि छह प्रकार के अनन्तानन्त द्रव्यों का 1
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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