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________________ 156 नय-रहस्य 3. उपचरित-सद्भूतव्यवहारनय 4. अनुपचरित-सद्भूतव्यवहारनय इन भेदों को इस तालिका के माध्यम से समझा जा सकता है - व्यवहारनय असद्भूतव्यवहारनय सद्भूतव्यवहारनय उपचरित अनुपचरित असद्भूतव्यवहारनय असद्भूतव्यवहारनय उपचरित-सद्भूतव्यवहारनय अनुपचरित-सद्भूतव्यवहारनय (अशुद्ध-सद्भूतव्यवहारनय) - (शुद्ध-सद्भूतव्यवहारनय) व्यवहारनय के चारों भेदों का स्वरूप और उनके विभिन्न प्रयोग 1. उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय जिनका आत्मा से एकक्षेत्रावगाह-सम्बन्ध भी नहीं है - ऐसे संश्लेषरहित स्त्री-पुत्र-धन-सम्पत्ति आदि पदार्थों से आत्मा का स्वस्वामी कर्ता-भोक्ता आदि सम्बन्ध जानना/कहना उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय है। यहाँ इसके कुछ शास्त्रीय उद्धरण दिये जा रहे हैं - (1) असद्भूतव्यवहार ही उपचार है और उपचार में भी जो उपचार करता है, वह उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय है। - आलापपद्धति, पृष्ठ 224 (2) उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय से आत्मा घट-पट-रथ आदि का कर्ता है। - नियमसार, गाथा 18 की टीका (3) उपचरित-असद्भूतव्यवहारनय से यह आत्मा काष्ठासन
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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