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नय - रहस्य
तथा मोक्ष के कारणभूत शुद्धभावना - परिणतिरूप क्रिया से तन्मय नहीं होता, अतः वह निष्क्रिय है। कहा भी है - निष्क्रियः शुद्धपारिणामिकः ।
(ब) सहज शुद्धपारिणामिकभाव स्वरूप निजपरमात्मद्रव्य के सम्यक् श्रद्धा, ज्ञान व आचरण को आगम भाषा में औपशमिक, क्षायोपशमिक या क्षायिकभाव तथा अध्यात्म भाषा में शुद्धात्माभिमुख परिणाम, शुद्धोपयोग आदि कहा जाता है।
(स) उक्त शुद्धोपयोगरूप पर्याय भावनारूप है और मोक्ष अवस्था में उसका विनाश हो जाता है; अतः वह शुद्धात्मद्रव्य से कथंचित् भिन्न है ।
(द) शुद्धपारिणामिक भाव, शक्तिरूप मोक्ष है, यह व्यक्त पर्यायरूप मोक्ष का कारण नहीं है, शुद्धपारिणामिकभाव विषयक भावना (शुद्धोपयोग ) रागादिरहित शुद्ध उपादानरूप होने से मोक्ष का कारण है।
(इ) उक्त भावना, एकदेशशुद्धनिश्चयनय का विषय है तथा क्षायोपशमिकज्ञानरूप है, तथापि ध्यातापुरुष अर्थात् उस भावनारूप परिणमित आत्मा, स्वयं को मैं सकल निरावरण प्रत्यक्ष प्रतिभासमय अविनश्वर शुद्धपारिणामिक- परमभावलक्षणवाला निजपरमात्मद्रव्य ही हूँ, खण्डज्ञानरूप नहीं - ऐसा अनुभव करता है अर्थात् क्षायोपशमिकभावरूप खण्डज्ञानरूप पर्याय, अन्तर्मुख होकर अपने को द्रव्यरूप अनुभव करती है।
प्रश्न 13 - पर्याय स्वयं क्षणिक है, खण्डज्ञानरूप है, एकदेशशुद्ध है और वह स्वयं को त्रिकाली अखण्ड परिपूर्ण शुद्धद्रव्यरूप अनुभव करे यह तो असत्य होने से मिथ्यात्व हुआ, इसे सम्यग्दर्शन कैसे कह सकते हैं? अपूर्ण पर्याय में अपने को पूर्ण शुद्ध मानना क्या निश्चयाभास नहीं है ?
उत्तर - जिसमें अहंपना होता है, स्वयं को वैसा ही अनुभव
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