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________________ 148 नय-रहस्य सिद्धि के लिए अध्यात्मरूप परमागम में भी निश्चयनय के भेद-प्रभेद किये गये हैं। आगम में छह द्रव्यों की मुख्यता तथा अध्यात्मरूप परमागम में सात-तत्त्वों की मुख्यता से कथन किया गया है। प्रवचनसार, गाथा 232 की टीका में आचार्य जयसेन लिखते हैं - समस्त आगम के सारभूत चिदानन्द एक परमात्मतत्त्व के प्रकाशक 'अध्यात्म' नामक परंमागम से भी पदार्थों का ज्ञान होता है। प्रश्न 11 - जिसप्रकार भावास्रव आदि को निमित्त की अपेक्षा पुद्गल कहा है, उसीप्रकार क्या द्रव्यास्रव आदि को जीव भी कहा है? उत्तर - यद्यपि ऐसा कहने में कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि कर्मोदय; रागादि एवं कर्मबन्ध में - इन तीनों में परस्पर निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध तो कहा ही है, परन्तु आगम में कहीं भी द्रव्यास्रवादि को सीधे तौर पर जीव कहने का उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन जीव को कर्मों का कर्ता-भोक्ता आदि, अनुपचरित-असद्भूतव्यवहारनय से कहा ही है, अतः पुद्गलकर्म, व्यवहारनय से जीव के कर्म होने से उन्हें परोक्षतया जीव के ही कहा है - यह सिद्ध हो जाता है। वस्तुतः आत्महित के लिए रागादिभावों से कथंचित् भिन्न आत्मा को जानना प्रयोजनभूत है, न कि आत्मा से भिन्न द्रव्यकर्मों को। इसलिए कर्मों की चर्चा मात्र जीवभावों का ज्ञान कराने के प्रयोजन से ही की गई है। आगम का एक भेद, जैसे, अधि + आत्म = अध्यात्म कहा गया है, वैसे अधि-पुद्गल नाम का कोई भेद नहीं कहा गया। : प्रश्न 12 - जब कर्मोदय के निमित्त से होनेवाले रागादि भावों को पौद्गलिक कहा है तो कर्म के उपशम, क्षयोपशम या क्षय के निमित्त से होनेवाले सम्यग्दर्शन, केवलज्ञान आदि को भी पौद्गलिक क्यों नहीं कहा है? उत्तर - 1. रागादिभाव, चेतनारहित हैं और पुद्गल के लक्ष्य से
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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