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________________ 144 नय-रहस्य जाए तो प्रयोजनभूत तत्त्वों का यथार्थ निर्णय नहीं हो सकेगा और मोक्षमार्ग की प्रक्रिया ही नष्ट हो जाएगी। यहाँ इसी बात का स्पष्टीकरण किया जा रहा है। ___ 1. अशुद्धनिश्चयनय एवं उसके विषय का सर्वथा निषेध करने पर अपने को आप भूलकर हैरान हो गया - यह रहस्य समझ में नहीं आएगा और हम परपदार्थों को ही अपना भला-बुरा करनेवाला मानते रहेंगे। पुण्य-पाप, आस्रव-बन्ध आदि संसारतत्त्व का निषेध हो जाएगा और संसार का अभाव मानने पर मोक्षमार्ग और मोक्ष की सिद्धि भी न हो सकेगी। जे त्रिभुवन में जीव अनन्त, सुख चाहें दुःखतें भयवन्त - इस तथ्य का लोप होने से तत्त्वाभ्यास, तत्त्वनिर्णय तथा आत्मानुभूतिरूप धर्म करने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी; अतः आत्मा, स्वयं अपनी भूल से दुःखी है - ऐसा स्वीकार करके दुःख-दूर करने का सच्चा उपाय करना चाहिए। 2. एकदेशशुद्धनिश्चयनय एवं उसके विषय का सर्वथा निषेध करने पर आत्मानुभूति, रत्नत्रय अर्थात् संवर-निर्जरातत्त्व का लोप हो • जाएगा, जिससे रत्नत्रय के लिए पुरुषार्थ करने की प्रेरणा देनेवाली जिनवाणी तथा उसके प्रवक्ता आप्त अर्थात् तीर्थंकर परमात्मा के भी अभाव का प्रसंग आएगा; अतः इसके विषय को स्वीकार करके रत्नत्रय प्राप्ति का पुरुषार्थ करना चाहिए। 3. साक्षात्शुद्धनिश्चयनय एवं उसके विषय का निषेध करने पर क्षायिकभाव अर्थात् मोक्षतत्त्व का निषेध हो जाएगा, जिससे अर्हन्त और सिद्धदशा के निषेध का प्रसंग भी आएगा; अतः साक्षात्शुद्धनिश्चयनय के विषय को स्वीकार करके पूर्णता के लक्ष्य से सच्ची शुरुआत करना चाहिए। उक्त तीन नय आत्मा की अशुद्ध एवं शुद्धपर्यायों को अपना विषय
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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