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निश्चयनय के भेद - प्रभेद
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अपेक्षा शुद्ध और आत्मा की पर्याय होने से उसे निश्चय कहा जाता है। आत्मा को ज्ञानी, धर्मात्मा, श्रावक, मुनि आदि आत्मीक पर्यायों से अभिन्न जानना, पर्यायगत यथार्थ तो है ही, अतः उसमें यथार्थ निरूपण सो निश्चय यह परिभाषा भी घटित होती है।
प्रश्न 4 कर्ता - कर्म व्यवस्था में निश्चयनय के चार भेद किस प्रकार घटित होते हैं ?
उत्तर आत्मा की कर्ता-कर्म व्यवस्था के प्रमुख बिन्दु इसप्रकार
हैं
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1. आत्मा, उपचरित - असद्भूतव्यवहारनय से धन्धा - व्यापार, मकान आदि पर - पदार्थों का कर्ता है।
2. आत्मा, अनुपचरित - असद्भूतव्यवहारनय से पुद्गल की पर्यायरूप द्रव्य-आस्रव - बन्ध - पुण्य-पाप पदार्थों का कर्ता है। आत्मा को द्रव्य-संवर - निर्जरा मोक्ष का कर्ता भी इसी नय का कथन जानना चाहिए।
3. आत्मा, अशुद्धनिश्चयनय से अपने आस्रव-बन्ध - पुण्य-पाप आदि भावों का कर्ता है।
4. आत्मा, विवक्षित एकदेशशुद्धनिश्चयनय से संवर - निर्जरारूप शुद्धभावों का कर्ता है |
5. आत्मा, साक्षात्शुद्धनिश्चयनय से पूर्ण निर्मल पर्यायों का कर्ता है।
6. आत्मा, परमशुद्धनिश्चयनय से अकर्तृत्वशक्तिस्वरूप निष्क्रिय ध्रुव तत्त्वरूप परमपारिणामिकभावस्वरूप है।
विशेष आत्मा को रागादि का कर्ता कहने में उपचरितसद्भूतव्यवहारनय तथा शुद्धपर्याय का कर्ता कहने में अनुपचरित
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