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निश्चयनय के भेद-प्रभेद
प्रश्न 1 - यदि आंशिक शुद्धपर्यायरूप परिणमित आत्मा को विषय बनानेवाला नय, एकदेशशुद्धनिश्चयनय कहलाता है तो क्या
आंशिक अशुद्धरूप परिणमित आत्मा को विषय बनानेवाला एकदेशअशुद्धनिश्चयनय भी हो सकता है?
उत्तर - एकदेशअशुद्धनिश्चयनय कहा तो सकता है, परन्तु एकदेशशुद्ध कहने में यह बात गर्भित ही है कि एकदेश-अशुद्धता बाकी . है। इसलिए आगम में उसका अलग से उल्लेख नहीं किया गया। इस सन्दर्भ में क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी ने नयदर्पण, पृष्ठं 624 पर निम्नानुसार स्पष्टीकरण किया है -
आगम में क्योंकि जीवों को ऊँचे उठाने की भावना प्रमुख है, अतः यहाँ एकदेशशुद्धनिश्चयनय का कथन तो आ जाता है, पर एकदेशअशुद्धनिश्चयनय का कथन नहीं किया जाता। अपनी बुद्धि से हम एकदेशअशुद्धनिश्चयनय को भी स्वीकार कर सकते हैं। जितनी कुछ नय, आगम में लिखी हैं, उतनी ही हों- ऐसा नियम नहीं। वहाँ तो एक सामान्य नियम बता दिया है। उसके आधार पर अन्य नय , भी यथायोग्यरूप से स्थापित की जा सकती हैं।
जिसप्रकार साधक के क्षायोपशमिकभाव को एकदेशशुद्धनिश्चयनय से क्षायिकवत् पूर्ण शुद्ध कहा जाता है; उसीप्रकार उसे एकदेशअशुद्धनिश्चयनय से औदयिकवत् पूर्ण अशुद्ध भी कहा जा सकता है। इसमें कोई विरोध नहीं। .
प्रश्न 2 - निश्चय के उक्त चार भेदों की विषय-वस्तु, पाँच भाव, सात तत्त्व तथा चौदह गुणस्थानों में किस प्रकार घटित होती है?
उत्तर - यहाँ दी जा रही तालिका से निश्चयनय के भेदों की विषय-वस्तु को विभिन्न सन्दर्भो में समझा जा सकता है।