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________________ नय - रहस्य विद्यमान अशुद्धता के अंश को गौण करके उसे पूर्ण शुद्ध कहता है। प्रश्न पर्यायगत शुद्धता - अशुद्धता को गौण करना अलग बात है और आंशिक शुद्धपर्याय को पूर्ण शुद्ध कहना अलग बात है। क्या लोक में अथवा जिनागम में ऐसे प्रयोग उपलब्ध होते हैं ? 132 e. उत्तर हाँ, (1) शहर के किसी एक मकान में आग लगने पर उस शहर में आग लग गई - ऐसा प्रचलित है ही । इसीप्रकार ह (2) एल.एल.बी. के प्रथम वर्ष में प्रवेश लेने पर उस विद्यार्थी को लोग वकील साहब कहने लगते हैं। (3) हम नगर के एक छोटे से हिस्से में रहते हुए भी अपने को उस नगर / प्रान्त / देश में रहनेवाला कहते हैं। न केवल कहते हैं, अपितु वैसा अनुभव भी करते हैं (4) किसी समाज में कुछ व्यक्ति सज्जन, होशियार या विद्वान् हों तो सारी समाज को वैसा कहा जाता है। ये तो हुए लोक में प्रचलित कुछ प्रयोग । वृहद्रव्यसंग्रह, गाथा 8 की टीका में छद्मस्थ जीव को एकदेशशुद्धनिश्चयनय से भावनारूप से विवक्षित अनन्त ज्ञान - सुख आदि का कर्ता और मुक्त-अवस्था में शुद्धनय (साक्षात्शुद्धनिश्चयनय से ) अनन्त सुख आदि का कर्ता कहा है। टीका का वह अंश इसप्रकार है -- जब जीव, शुभ -अशुभरूप तीन योग के व्यापार से रहित, शुद्ध-बुद्ध - एकस्वभावरूप से परिणमन करता है, तब छद्मस्थ अवस्था में भावनारूप से विवक्षित अनन्त ज्ञान- सुखादि शुद्धभावों का एकदेशशुद्धनिश्चयनय से कर्ता है और मुक्त अवस्था में अनन्त . ज्ञान - सुखादिभावों का शुद्धाय से कर्ता है। इस सन्दर्भ में यह बात गहराई से विचारणीय है कि जब छद्मस्थ : जीव को निर्विकल्प अनुभूति प्रगट होती है, तब वह, उसमें आनेवाले अतीन्द्रिय आनन्द के स्वाद में मग्न रहता है; न कि वह कितना है,
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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