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________________ निश्चयनय के भेद-प्रभेद 131 अपेक्षा इन नामों से सम्बोधित किया जाता है। तत्सम्बन्धी कुछ उद्धरण इसप्रकार हैं - 1. कम्मस्स य परिणाम, णोकम्मस्स य तहेव परिणाम। ण करेइ एयमादा, जो जाणदि सो हवदि णाणी।। - आचार्य कुन्दकुन्ददेव, समयसार, गाथा 75 2. क्षणभर निज रस को पी चेतन, मिथ्यामल को धो देता है। - काषायिक भाव विनष्ट किये, निज आनन्द अमृत पीता है।। ___- बाबू जुगलकिशोरजी 'युगल' कृत देव-शास्त्र-गुरु पूजन 3. भेदविज्ञान जग्यो जिनके घट, शीतल चित्त भयो जिमि चन्दन, केलि करें शिवमारग में, जग माहिं जिनेसुर के लघुनन्दन। सत्यस्वरूप सदा जिनके, प्रगट्यो अवदात मिथ्यात निकन्दन, शान्तदशा तिनकी पहचान, करैं कर-जोरि बनारसी वन्दन।। - कविवर बनारसीदासजी, नाटक समयसार प्रश्न - आंशिक शुद्धपर्याय से तन्मय आत्मा को एकदेशशुद्धनिश्चयनय का विषय कहना तो ठीक है, परन्तु आंशिक शुद्ध-अवस्था को पूर्ण शुद्ध कहना, सत्य कैसे हो सकता है? उत्तर - प्रत्येक नय अपनी अपेक्षा से जो भी कथन करता है, सम्पूर्ण द्रव्य के बारे में ही करता है। नयों की परिभाषा के प्रकरण में भी यह स्पष्ट किया गया था कि वस्तु के एकदेश में वस्तु का निश्चय करना ही अभिप्राय (नय) है और ज्ञाता का अभिप्राय ही नय है। जिसप्रकार परमशुद्धनिश्चयनय, पर्यायगत अशुद्धता को गौण करके द्रव्य की मुख्यता से द्रव्य को शुद्ध कहता है और अशुद्धनिश्चयनय द्रव्यगत शुद्धता को गौण करके पर्याय की मुख्यता से द्रव्य को अशुद्ध कहता है, इसीप्रकार एकदेशशुद्धनिश्चयनय भी आंशिक शुद्धपर्याय में
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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