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________________ निश्चयनय के भेद-प्रभेद ___127 निरूपण होने से निश्चयनय है। इस निरूपण में निश्चयनय की स्वाश्रितो निश्चयः और यथार्थ निरूपण सो निश्चय - दोनों परिभाषाएँ घटित होती हैं। जीव की पर्यायें, मुख्यतया तीन प्रकार की हैं - अशुद्ध, आंशिक शुद्ध और पूर्णशुद्ध। पर्याय के इन तीनों भेदों के आधार पर निश्चयनय के तीन भेद कहे गये हैं। परमशुद्धनिश्चयनय, पर्यायों से भिन्न त्रिकाली द्रव्य को विषय बनाता है; अतः उसे हम सबसे अलग कह सकते हैं। निश्चयनय के भेद-प्रभेदों की परिभाषा और प्रयोग निश्चयनय के चार भेद, किस आधार पर किये गये हैं - इसका स्पष्टीकरण करने के पश्चात् अब उनकी परिभाषा तथा जिनागम में समागत कुछ प्रयोगों का उल्लेख किया जा रहा है। अध्यात्म का प्रकरण होने से सर्वप्रथम नयाधिपति परमशुद्धनिश्चय के स्वरूप और प्रयोगों की चर्चा करते हैं - (अ) परमशुद्धनिश्चयनय एवं उसके प्रयोग शुद्ध परिणामिक-भावरूप सामान्य अंश की मुख्यता से आत्मा को जाननेवाले ज्ञान को परमशुद्धनिश्चयनय कहते हैं। यही शुद्धात्मा, स्व-सन्मुखज्ञान का ज्ञेय, श्रद्धा का श्रद्धेय तथा ध्यान का ध्येय है। प्रश्न - क्या सम्यग्दर्शन और परमशुद्धनिश्चयनय का विषय एक ही है? उत्तर - दोनों का विषय एक ही है, किन्तु श्रद्धा और ज्ञान की प्रकृति में अन्तर है, अतः परमशुद्धनिश्चयनय अन्य धर्मों को गौण करता हुआ अपने विषय को ग्रहण करता है और श्रद्धा, उसमें मुख्य-गौण किये बिना निर्विकल्प प्रतीतिभावरूप से अहंपना स्थापित करती है। प्रश्न - पक्षातिक्रान्त अनुभूति और श्रद्धा की निर्विकल्पता में क्या अन्तर है?
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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