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________________ नय - रहस्य आत्मानुभूतिरूप परिणमने से है । वृहद्रव्यसंग्रह, गाथा 57 की टीका में कहा है कि मिथ्यात्व, रागादि समस्त विकल्प- जाल के त्याग से स्वशुद्धात्मा में जो अनुष्ठान होता है, उसे अध्यात्म कहते हैं। निश्चयनय के भेद - प्रभेदों का आधार 126 निश्चयन के चारों प्रभेदों की परिभाषा, प्रयोग तथा उपयोगिता पर चर्चा करने के पहले यह जानना आवश्यक है कि ये चारों भेद किस दृष्टि से या किस आधार पर किये गये हैं? परमशुद्धनिश्चयनय, रंग-राग और भेद से रहित त्रिकाली- अखण्डअभेद - एक ज्ञायकभाव अर्थात् शुद्धपरिणामिकभावरूप, दृष्टि के विषय को अपना विषय बनाता है। 1 शेष तीन नय, परद्रव्यों से भिन्न और अपने गुण- पर्यायों से अभिन्न वस्तु-स्वरूप पर आधारित हैं। प्रत्येक द्रव्य, पर-पदार्थों से भिन्न और अपने गुण - पर्यायों से अभिन्न होने से अपनी प्रत्येक पर्याय के कर्ता-भोक्ता स्वयं हैं, उसमें परद्रव्य का जरा भी हस्तक्षेप नहीं है। समयसार की तीसरी गाथा की टीका में कहा है कि प्रत्येक द्रव्य अपने अनन्त गुण - पर्यायों का समूह का चुम्बन करते हैं, किन्तु अन्य द्रव्य का स्पर्श भी नहीं करते। पूर्व में निश्चयनय का स्वरूप बताते हुए स्पष्ट किया गया है कि निश्चयनय, (1) एक ही द्रव्य के भाव को उसरूप कहता है, (2) जिस द्रव्य को जो परिणति हो, उसे उसी द्रव्य की कहता है और (3) स्वद्रव्य - परद्रव्य उनके भावों और कारण -कार्य आदि को यथावत् निरूपण करता है, किसी को किसी से नहीं मिलाता। इसप्रकार यह स्पष्ट है कि पर से भिन्न और अपनी पर्यायों से अभिन्नता के आधार पर, प्रत्येक पर्याय को अपने द्रव्य की कहना तथा द्रव्य को उनका कर्ता-भोक्ता कहना, वस्तु का स्वाश्रित अथवा यथार्थ
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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