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नय - रहस्य
पंचाध्यायीकार निश्चयनय को एक ही प्रकार का मानते हैं। वे अपनी मान्यता पर इतने दृढ़ हैं कि ज्ञान में निश्चयनय के अनेक भेद को वे ज्ञान का अपराध घोषित करते हैं ।
निश्चयनय के भेद - प्रभेदों को जानने की आवश्यकता
उपर्युक्त विवेचन के अनुसार यद्यपि निश्चयनय एक ही प्रकार का होता है, फिर भी जिनागम में उसके भेद-प्रभेदों का और उनकी विषय-वस्तु का उल्लेख पाया जाता है।
आलापपद्धति में निश्चयनय दो प्रकार का कहा है - शुद्धनिश्चयनय और अशुद्धनिश्चयनय ।
शुद्ध निश्चयनय की विषय-वस्तु के आधार पर इसका कथन भी तीन रूपों में पाया जाता है; अतः निश्चयनय के कुल चार भेद हो जाते हैं, जिन्हें निम्न चार्ट द्वारा समझा जा सकता है
- निश्चयनय
अशुद्धनिश्चयनय
-शुद्धनिश्चयनय
एकदेशशुद्धनिश्चयनय शुद्धनिश्चयनय
परमशुद्धनिश्चयनय
यहाँ यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि शुद्धनिश्चयनय, निश्चयनय के मूल भेद के रूप में भी कहा गया है तथा उसके तीन भेदों में से दूसरे भेद के रूप में अर्थात् द्वितीय प्रभेद के रूप में भी बताया गया है। कहीं-कहीं इस प्रभेद को साक्षात्शुद्धनिश्चयनय भी कहा है। रागादि भाव जीवजनित हैं या कर्मजनित इस सन्दर्भ में निश्चयनय के विभिन्न प्रयोग, विभिन्न ग्रन्थों में अलग-अलग तरह से किये गये हैं। यहाँ परमात्मप्रकाश और वृहद्रव्यसंग्रह में उपलब्ध प्रयोगों की मीमांसा की जा रही है
परमात्मप्रकाश, अध्याय 1, दोहा 64 की टीका में अनाकुलत्व