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निश्चयनय के भेद-प्रभेद यद्यपि जिनागम का सम्पूर्ण कथन नयों पर आधारित है, परन्तु सर्वत्र यह उल्लेख नहीं होता कि यह किस नय का कथन है। समयसार में आत्मा को प्रमत्त-अप्रमत्त भावों से रहित भी कहा है और अज्ञानी भी कहा है; रागादि का कर्ता भी कहा है और अकर्ता भी कहा है; परन्तु ये किस नय के कथन हैं - यह बात हर जगह नहीं कही गई। यदि कदाचित् यह कथन निश्चयनय या व्यवहारनय से है - ऐसा कहा भी हो तो यह निश्चयनय/व्यवहारनय के किस भेद-प्रभेद का कथन है - यह स्पष्ट नहीं हो पाता। निश्चयनय.से ही आत्मा को रागादि का कर्ता भी कहा है और निश्चयनय से ही आत्मा को रागादि रहित भी कहा है। - आत्मा को रागादि का कर्ता कहनेवाला निश्चयनय, कौन-सा है और आत्मा को रागादि रहित त्रिकाल शुद्ध कहनेवाला निश्चयनय कौन-सा है? – यह स्पष्ट समझे बिना आत्मा के स्वरूप का निर्णय कैसे हो सकेगा? इसलिए आवश्यक है कि हम नयों के भेद-प्रभेद, उनकी विषय-वस्तु, प्रयोजन, उपयोगिता आदि पर गम्भीरता से विचार करें।
नयों के भेद-प्रभेद की श्रृंखला में सर्वप्रथम निश्चयनय के भेदप्रभेद की चर्चा प्रारम्भ की जा रही है - निश्चयनय के भेद हो सकते हैं या नहीं
निश्चय के भेदों की चर्चा करते समय सर्वप्रथम यह तथ्य विचारणीय