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पक्षातिक्रान्त
उत्तर - अज्ञानी को अनादि से अगृहीत मिथ्यात्व में होनेवाले व्यवहार का पक्ष तो है ही, परन्तु नयों का सम्यक् प्रयोग न होने से उसे निश्चयाभास, व्यवहाराभास, उभयाभास के रूप में एकान्त नयपक्ष भी उत्पन्न हो जाता है। आत्मा को एकान्त शुद्ध मानकर, पर्याय में भी रागादिक का सर्वथा निषेध मानने का मिथ्या अभिप्राय, एकान्त शुद्धनय का पक्ष है।
प्रश्न 9 - शुद्धनय के पक्ष के सम्बन्ध में अभी तक तीन बातें कही गई हैं - ____ 1. अनादि से आज तक इस जीव को शुद्धनय का पक्ष कभी. आया ही नहीं।
2. आत्मा को सर्वथा शुद्ध मानना, शुद्धनय का पक्ष है।
3. आत्मानुभूति के पूर्व होनेवाले शुद्धस्वरूप-सम्बन्धी विकल्प को भी शुद्धनय का पक्ष कहा है।
उक्त तीनों बातों में हम सत्य किसे मानें?
उत्तर - भाई! प्रत्येक कथन का यथार्थ आशय समझकर, उस अपेक्षा से उसे सत्य समझना चाहिए।
1. जब यह कहा जाए कि अनादि से जीव को शुद्धनय का पक्ष नहीं आया तो इसका आशय यह है कि जीव को शुद्धात्मा की बात सुनने की रुचि भी नहीं हुई अर्थात् आत्महित की सच्ची जिज्ञासा नहीं हुई।
2. आत्मा को सर्वथा शुद्ध मानना, शुद्धनय के एकान्तरूप नयाभास है, अतः यह मिथ्या नयपक्ष है।
3. आत्मानुभूति के पूर्व शुद्धात्मा-सम्बन्धी विकल्प भी नयपक्ष हैं, क्योंकि उसमें शुद्ध चैतन्य का स्वाद तो है नहीं, मात्र आत्मा ऐसा