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________________ 108 नय-रहस्य शब्दों में व्यक्त किया गया है - तच्चाणेसणकाले, समयं बुज्झेहि जुत्तिमग्गेण। . णो आराहणसमये, पच्चक्खो अणुहवो जह्मा।। तत्त्वान्वेषण-काल में ही आत्मा, युक्तिमार्ग से अर्थात् निश्चयव्यवहारनयों द्वारा जाना जाता है, परन्तु आत्मा की आराधना के समय वे विकल्प नहीं होते, क्योंकि उस समय तो आत्मा स्वयं प्रत्यक्ष ही है। __जब तक आत्मा का प्रत्यक्ष अनुभव नहीं हो जाता, तब तक उसके विभिन्न पक्षों (पहलुओं) को जानने के विकल्प उठना स्वाभाविक ही है। उन विकल्पों का समाधान, प्रत्यक्षानुभूति होने पर ही होता है। श्रुतभवनदीपक नयचक्र, पृष्ठ 24 में कहा भी है - - एवमात्मा यावद्व्यवहारनिश्चयाभ्यां तत्त्वमनुभवति तावत् परोक्षानुभूतिः। प्रत्यक्षानुभूतिर्नयपक्षातीता। इसप्रकार आत्मा जब तक व्यवहार और निश्चय के द्वारा तत्त्व का अनुभव करता है, तब तक परोक्षानुभूति होती है, क्योंकि प्रत्यक्षानुभूति नयपक्षातीत होती है। इस सन्दर्भ में इसी ग्रन्थ में पृष्ठ 35 पर देवदत्त द्वारा राजा से अपूर्व और परोक्ष घोड़ों की चर्चा किए जाने का उदाहरण देकर स्पष्ट किया गया है कि राजा उन घोड़ों के कद, रंग आदि अनेक धर्मों के बारे में विकल्प उठाकर पूछता है और जब वे घोड़े, राजा के सामने प्रत्यक्ष उपस्थित हो जाते हैं, तब सब कुछ प्रत्यक्ष स्पष्ट हो जाने से विकल्पों का शमन सहज हो जाता है। परोक्ष पदार्थ की चर्चा होने पर उसमें रहने वाले अनन्त धर्मों के बारे में विकल्प का उठना स्वाभाविक है, अतः शुद्धात्म तत्त्व के निर्णय
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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