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________________ 106 नय-रहस्य प्रमाणों के सन्दर्भ में इस विषय की मीमांसा आवश्यक है; अतः इस . गम्भीर एवं गहन विषय को कुछ प्रश्नोत्तरों के माध्यम से स्पष्ट किया जा रहा है - प्रश्न 1 - नयपक्ष एवं पक्षातिक्रान्त से क्या आशय है? उत्तर - नयपक्ष से आशय किसी नय के विषय-सम्बन्धी विकल्पों से है। आत्मा कर्मों से बँधा है, अशुद्ध है, अनेकरूप है - इत्यादि पर्यायगत भेदों का विचार करना, व्यवहारनय का पक्ष है तथा आत्मा कर्मों से अबद्ध है, शुद्ध है, एकरूप है - इत्यादि शुद्धनय के विषयसम्बन्धी विकल्प, शुद्धनय अथवा निश्चयनय का पक्ष है। आत्मा कर्मों से बँधा है या नहीं बँधा है, इसप्रकार कर्मों की अपेक्षा विचार न करके उसे मात्र चैतन्यस्वरूप ही अनुभव करना, पक्षातिक्रान्त दशा है। इस सन्दर्भ में समयसार, गाथा 142 की आत्मख्याति टीका का पण्डित जयचन्दजी छाबड़ा कृत भावार्थ अवश्य ध्यान देने योग्य है, जो इसप्रकार है - जीव कर्म से बँधा है तथा नहीं बँधा हुआ है - यह दोनों नयपक्ष हैं। उनमें से किसी ने बन्धपक्ष ग्रहण किया, उसने विकल्प ही ग्रहण किया, किसी ने अबन्ध पक्ष लिया तो उसने भी विकल्प ही ग्रहण किया और किसी ने दोनों पक्ष लिये तो उसने भी पक्षरूप विकल्प का ही ग्रहण किया; परन्तु ऐसे विकल्पों को छोड़कर जो कोई भी पक्ष को ग्रहण नहीं करता, वही शुद्ध पदार्थ का स्वरूप जानकर, उसरूप समयसार को - शुद्धात्मा को प्राप्त करता है। नयपक्ष को ग्रहण करना, राग है; इसलिए समस्त नयपक्ष को छोड़ने से वीतराग समयसार हुआ जाता है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि वस्तु-स्वभाव का
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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