SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंक्षातिक्रान्त 105 तीसरी बार पुनः परिचय देने का प्रसंग बना और उनसे यह कहे बिना नहीं रहा गया कि देखो, यह सूट किसका है? - इसके बारे में मैं कुछ नहीं कहूँगा। वे सज्जन पुनः बहुत नाराज हुए और कहा कि तुम सूट के बारे में सोचो ही नहीं - ऐसा नहीं हो सकता क्या? इस प्रसंग में सूट के बारे में कोई विकल्प न होना ही पक्षातिक्रान्त की स्थिति है। इसीप्रकार आत्मा में कर्म नहीं है, राग नहीं है या इस सम्बन्ध में कोई विकल्प नहीं करना - ऐसे विकल्प भी निर्विकल्प अनुभूति में बाधक ही हैं; अतः चैतन्य रस का वेदन ही पक्षातिक्रान्त दशा है और यही मोक्षमार्ग है। 7. वस्तु की विकल्पात्मक महिमा भी नयपक्ष ही है, क्योंकि उसमें भी रागात्मक विकल्प हैं, वस्तु का रसास्वाद नहीं। एक महिला साड़ी खरीदते समय 20-25 साड़ियों में से एक साड़ी पसन्द करती है अर्थात् जो साड़ी नहीं लेना है, उनकी कमी देखकर उन्हें नहीं लेने का निर्णय करके सामने से हटा देती है। मानो उसने व्यवहार का पक्ष छोड़ दिया और जिसे खरीदना है, उसकी खूबियों का भलीभाँति विचार कर उसे खरीद लेती है। मानो वह शुद्धनय के पक्ष में आ गई, लेकिन जब वह साड़ी पहनती है, तब उन खूबियों का अर्थात् उसकी कीमत, रंग, डिजाइन आदि का विकल्प न करके मात्र पहनने का आनन्द लेती है, मानो यही उसकी पक्षातिक्रान्त अनुभूति है। इसप्रकार उपर्युक्त लौकिक प्रसंगों के माध्यम से पक्ष एवं पक्षातिक्रान्त दशा का स्वरूप भली-भाँति समझा जा सकता है। - • उक्त विवेचन द्वारा पक्षातिक्रान्त का स्वरूप विभिन्न उदाहरणों द्वारा समझने पर भी आत्मानुभूति के सम्बन्ध में जिनागम में उपलब्ध
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy