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पक्षातिक्रान्त
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वीतरागी मुनिराज, अरि-मित्र, महल - मसान, कंचन - काँच, निन्दक - प्रशंसक आदि सभी के प्रति समभाव रखते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि वे सबको एक जैसा मानते हैं । समभाव का अर्थ सबको एक-सा मानना नहीं है, अपितु जो जैसा है, उसे वैसा जानकर, रागद्वेष नहीं करना, स्वरूप में समाना यही समभाव है।
4. भारतीय राजनैतिक जगत् में आज धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता - इन दो शब्दों का प्रयोग बहुत होता है। यदि कोई हिन्दू नेता मुसलमानों के पक्ष की बात करता है तो उसे धर्म-निरपेक्ष कहा जाता है और हिन्दू-हितों की बात करता है तो उसे साम्प्रदायिक कहा जाता है।
वस्तु-स्थिति यह है कि भारत में वैधानिकरूप से रहनेवाले सभी जातियों तथा वर्गों के लोग, भारत के नागरिक हैं; अतः सभी को शिक्षा स्वास्थ्य, रोजगार आदि की सुविधाएँ समानरूप से मिलनी ही चाहिए। भाषा या जाति आदि के आधार पर विकास की नीतियाँ बनाना पक्षपात होगा और आवश्यकता के अनुसार, जाति आदि से निरपेक्ष रहकर विकास के प्रयास करना, निष्पक्षता कही जाएगी।
यदि कोई राष्ट्रद्रोही या आतंकवादी है तो उसे न्याय-व्यवस्था के अनुसार न्यायालय से सजा दिलाना शासन का कर्तव्य है। यदि नियमानुसार, मानवीयता के आधार पर शासक उसे क्षमा करके, फाँसी की सजा निरस्त कर दे तो भी यह निष्पक्षता होगी, परन्तु यदि राजनैतिक स्वार्थवश उसे क्षमा किया जाए या उसके लिए घोषित सजा को टाला जाए तो वह पक्षपात होगा ।
5. राजनैतिक जीवन में नेता, भले पक्षपात से ग्रस्त हों, परन्तु व्यक्तिगत व्यवसाय में सभी निष्पक्ष वर्तन करते हैं। कोई भी दुकानदार