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पक्षातिक्रान्त निश्चय-व्यवहारनयों के स्वरूप और विषय-वस्तु की चर्चा करने के पश्चात् पक्षातिक्रान्त की चर्चा क्रम प्राप्त है; क्योंकि नयों के द्वारा वस्तु-स्वरूप का सम्यक् निर्णय करने के पश्चात् नय-विकल्पों से भी पार निर्विकल्प आत्मानुभूति प्रगट होती है। इसी निर्विकल्प अनुभूति को पक्षातिक्रान्त अथवा समयसार कहा जाता है।
नयपक्ष एवं पक्षातिक्रान्त की चर्चा जिनागम में विभिन्न स्थलों में अत्यन्त गहन और सूक्ष्मता से की गई है। यद्यपि उसी सन्दर्भ में इस विषय की चर्चा करना इष्ट है, तथापि हमारे लौकिक जीवन में भी पक्ष
और निष्पक्ष (पक्षातिक्रान्त) दशा के अनेक प्रसंग बनते हैं, जिन पर विचार करने से. जिनागम में उपलब्ध विषय को सरलता से समझा जा सकेगा; अतः यहाँ पहले कुछ लौकिक प्रसंगों के माध्यम से हमारे जीवन में घटित होनेवाले पक्षपात एवं निष्पक्षता को स्पष्ट किया जा रहा है। उसके पश्चात् प्रश्नोत्तरों के माध्यम से हम आत्मानुभूति के सन्दर्भ में उत्पन्न होनेवाले नय-पक्ष और पक्षातिक्रान्त की चर्चा करेंगे।
वास्तव में वस्तु-स्वभाव अर्थात् सत्य को स्वीकार करना, पक्षपात नहीं है, अपितु व्यक्तियों/समूहों के प्रति राग-द्वेष के आधार पर उनका समर्थन या निषेध करना पक्षपात है। यहाँ कुछ वर्तमान प्रसंगों के सन्दर्भ में इस विषय को स्पष्ट किया जा रहा है। .