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नय-रहस्य 1. आध्यात्मिक सत्पुरुष पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी ने दिगम्बर धर्म की सत्यता को जानकर, पहचानकर, उसे अंगीकार करते हुए स्थानकवासी सम्प्रदाय और उसमें स्वीकृत साधुवेश का त्याग कर दिया तो क्या यह कहना उचित है कि वे दिगम्बर सम्प्रदाय के पक्ष में आ गए या कुन्दकुन्दाचार्य का पक्ष करने लगे? नहीं, क्योंकि उन्हें सत्य की उपलब्धि ही दिगम्बर शास्त्रों के माध्यम से हुई, इसलिए उन्होंने डंके की चोट पर यह घोषणा की कि दिगम्बर धर्म ही सत्य है।
वे अपने श्रोताओं से भी यही अपेक्षा रखते थे कि वे उन्हें सम्प्रदाय परिवर्तन करनेवाले के रूप में न देखें, अपितु सच्चे मुक्तिमार्ग के पथिक के रूप में देखें। इसीलिए वे अपने प्रवचनों में बारम्बार कहा करते हैं कि दिगम्बर धर्म कोई वाड़ा या सम्प्रदाय नहीं है; यह तो वीतराग-सर्वज्ञ-परमात्मा द्वारा सौ इन्द्रों और गणधरों की उपस्थिति में कहा गया वस्तु का स्वरूप है; अतः वे दिगम्बर धर्म के प्रबल प्रचारक होने पर भी पक्षातिक्रान्त ही हैं और हम यदि दिगम्बर धर्म का मर्म न समझकर, मांत्र कुल-परम्परा से दिगम्बर धर्म को सही मानते हैं, तो हम जरूर पक्षपाती ही हैं।
दिगम्बर समाज के सैकड़ों विद्वानों और लाखों साधर्मियों ने पूज्य गुरुदेवश्री से दिगम्बर धर्म का मर्म समझा और उसकी श्रद्धा करने लगे; परन्तु इस सत्य को न समझनेवाले लोग कहने लगे कि ये लोग कानजीमत/सोनगढ़ पन्थ के समर्थक हो गए, परन्तु यह उनकी द्वेषपूर्ण भ्रान्ति ही है, क्योंकि पूज्य गुरुदेवश्री कहते हैं कि यह हमारे घर की बात नहीं है, यह तो तीर्थंकर परमात्मा का कहा हुआ तथा दिगम्बर सन्तों
द्वारा शास्त्रों में गूंथा हुआ परम सत्य है; अतः पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा किये । गये दिगम्बर धर्म के रहस्योद्घाटन को कानजीमत/सोनगढ़ पन्थ