________________
94
नय-रहस्य आवश्यकताएँ और व्यवस्थाएँ सबके लिए एक जैसी होती हैं; उनमें जाति, कुल, लिंग, धर्म आदि का कोई भेद नहीं होता। कैंसर आदि बीमारियाँ भी शरीर की योग्यतानुसार जाति, धर्म आदि का भेद किये बिना सबकी एक जैसी होती हैं तथा प्रत्येक को उनका इलाज कराने का अधिकार होता है, परन्तु कैंसर का इलाज तो कैंसर के अस्पताल में कैंसर के विशेषज्ञ द्वारा ही होगा। किसी भी अस्पताल में किसी भी डॉक्टर से इलाज कराना कैसे सम्भव है? यही व्यवस्था शिक्षा, आजीविका, यातायात, जीवन में प्रगति-प्रतिष्ठा आदि सभी प्रसंगों में यथासम्भव समझ लेना चाहिए। इस अपेक्षा से विचार करें तो सम्यक्त्वप्राप्ति के लिए जैनधर्म में बाह्य जातिभेद, लिंगभेद को बिलकुल अहमियत नहीं दी गई है।
प्रश्न - सम्यक्त्व-सन्मुखता का प्रारम्भ कब से होता है?
उत्तर - किसी भी संज्ञी-पंचेन्द्रिय जीव को सच्चे देव-गुरुशास्त्रादि के निमित्त से सच्चे उपदेश का लाभ मिले, उसे सुनकर तथा गहराई से विचार करने पर उसका मोह मन्द हो तो उसे आत्म-हित करने की गहरी भावना उत्पन्न होती है। तब उसके मन में उठनेवाले विचारों का चित्रण पण्डित टोडरमलजी ने निम्नानुसार किया है -
___“अहो! मुझे तो इन बातों की खबर ही नहीं, मैं भ्रम से भूलकर प्राप्त पर्याय ही में तन्मय हुआ, परन्तु इस पर्याय की तो थोड़े ही काल की स्थिति है तथा यहाँ मुझे सर्व निमित्त मिले हैं; इसलिए मुझे इन बातों को बराबर समझना चाहिए, क्योंकि इनमें तो मेरा ही प्रयोजन भासित होता है। ऐसा विचार कर जो उपदेश सुना, उसके निर्धार करने का उद्यम किया।"1
1. मोक्षमार्ग प्रकाशक, पृष्ठ 257