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________________ 93 जैनाभास सम्यक्त्व-रत्न को पा सकता है। यमपाल चाण्डाल जैसे निम्नकुलोत्पन्न व्यक्ति को भी सम्यक्त्व प्राप्ति का तथा इन्द्रभूति गौतम जैसे उच्च-कुलोत्पन्न, तीव्र गृहीत-मिथ्यादृष्टि जीव को भी सम्यक्त्व प्राप्ति तथा गणधरपद एवं कैवल्य-प्राप्ति का उल्लेख शास्त्रों में पाया जाता है। भगवान महावीर एवं पार्श्वनाथ के जीव ने शेर तथा हाथी के भव में सम्यक्त्व प्राप्त किया था। नरक में भी अनेक जीवों द्वारा सम्यक्त्व प्राप्ति करने के उल्लेख जिनागम में प्राप्त होते हैं। उपर्युक्त उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि सम्यक्त्वोत्पत्ति की पात्रता चारों गतियों में उत्पन्न संज्ञी-पंचेन्द्रिय जीवों में होती है, परन्तु सम्यक्त्वोत्पत्ति के पूर्व वीतरागी देव-गुरु-शास्त्र के श्रद्धान और जिनेन्द्रकथित तत्त्वार्थश्रद्धान के साथ सामान्य सदाचार होता ही है। सम्यक्त्वोत्पत्ति के पश्चात् भी यथासम्भव जैनाचारं का पालन सहज ही होता है चाहे वह किसी भी कुल में उत्पन्न क्यों न हो? .. . प्रश्न - उक्त विवेचन से तो ऐसा लगता है कि आप अन्य मतानुयायियों को भी सम्यग्दर्शन होना मानते हैं? उत्तर - अरे भाई! जब प्रत्येक संज्ञी-पंचेन्द्रिय जीव, सम्यक्त्व प्रगट कर सकता है तो अन्य-मतानुयायी क्यों नहीं कर सकता? वे भी तो आत्मा हैं और उनमें भी श्रद्धागुण है तथा संज्ञी-पंचेन्द्रिय होने से उनमें सम्यग्दर्शन प्रगट करने की सामान्य योग्यता भी प्रगट हो गई है। । ध्यान रहे, इस कथन से यह नहीं समझना चाहिए कि वे अपनी वर्तमान मान्यता को सुरक्षित रखकर सम्यग्दृष्टि हो जाएंगे। सच्चे देव-शास्त्र-गुरु और सात तत्त्वों के श्रद्धान का नियम तो सबके लिए एक ही है। लोक-व्यवहार में भी शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका आदि की
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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