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नय-रहस्य सम्यक्त्व-सन्मुखता के बदले पूर्ववत् विपरीत मान्यता पुष्ट करके मिथ्यात्व दृढ़ करने लगेगा।
प्रश्न - क्या जब तक सम्यक्त्व न हो, तब तक किसी न किसी आभास का रहना अनिवार्य है?
उत्तर - उक्त तीन प्रकार के जैनाभास तो उन जीवों की मुख्यता से कहे गए हैं, जो जीव जैनकुल में जन्मे हैं व जैन शास्त्रों का अभ्यास करते हैं, परन्तु जिनागम का सही अभिप्राय नहीं समझ पाए; इसलिए जैनाभासी ही कहे जाते हैं, अतः विपरीत दृष्टिपूर्वक शास्त्र-अभ्यास करनेवालों को भी उक्त आभास होते हैं। - जैनेतर मत में जन्मे जीवों की विपरीत मान्यता का उल्लेख मोक्षमार्ग प्रकाशक के पाँचवें और छठवें अधिकार में किया गया है
और एकेन्द्रिय आदि सभी मिथ्यादृष्टियों में पाये जाने वाले अगृहीत मिथ्यात्व का वर्णन, वहीं चौथे अधिकार में किया गया है। यद्यपि अगृहीत मिथ्यात्वरूप परिणति, एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रियपर्यन्त चारों गतियों के जीवों को करणलब्धि के अन्तिम समय तक पायी जाती है, तथापि सम्यक्त्व-सन्मुख जीव का मिथ्यात्व गलने लगता है अर्थात् उसके मिथ्यात्व की अनुभाग-शक्ति हीन होने लगती है।
प्रश्न - क्या जैनकुल में जन्मे व्यक्ति को ही सम्यक्त्व हो सकता है? . उत्तर - यदि ऐसा नियम होता तो शेष तीन गतियों में सम्यक्त्व की उत्पत्ति सम्भव न होती, क्योंकि जैन-अजैन का भेद तो मुख्यतया मनुष्य गति एवं पंचम काल में ही है। - सम्यक्त्व-प्राप्ति के लिए कोई भी संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव, ज्ञानी गुरु के उपदेश के निमित्त से तत्त्व-निर्णय करके, यथार्थ तत्त्व-प्रतीतिरूप