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नय-रहस्य अशुभोपयोग में अशुद्धता की अधिकता है तथा शुद्धोपयोग हो, तब तो परद्रव्य का साक्षीभूत ही रहता है, वहाँ तो कुछ परद्रव्य का प्रयोजन ही नहीं है। शुभोपयोग हो, वहाँ बाह्य-व्रतादिक की प्रवृत्ति होती है और अशुभोपयोग हो, वहाँ बाह्य-अव्रतादिक की प्रवृत्ति होती है, क्योंकि अशुद्धोपयोग के और परद्रव्य की प्रवृत्ति के निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध पाया जाता है तथा पहले अशुभोपयोग छूटकर, शुभोपयोग हो, फिर शुभोपयोग छूटकर, शुद्धोपयोग हो - ऐसी क्रम-परिपाटी है।
7. विपरीत मान्यता - शुभोपयोग शुद्धोपयोग का कारण है ?
निराकरण - जैसे, अशुभोपयोग छूटकर शुभोपयोग होता है, वैसे शुभोपयोग छूटकर शुद्धोपयोग होता है; इसलिए यदि इनमें कारणकार्यपना माना जाए तो मात्र शुभोपयोग ही शुद्धोपयोग का कारण नहीं ठहरेगा, अशुभोपयोग को भी शुभोपयोग का कारण मानना होगा, परन्तु ऐसा मानना तो विपरीत है, क्योंकि द्रव्यलिंगी को उत्कृष्ट शुभोपयोग होने पर भी शुद्धोपयोग नहीं होता; इसलिए इनमें परमार्थ से कारण-कार्यपना मानना योग्य नहीं है।
मात्र मन्दकषायरूप शुभोपयोग, निःकषायरूप शुद्धोपयोग का कारण नहीं हो सकता। हाँ, यदि शुभोपयोग होने पर शुद्धोपयोग का पुरुषार्थ करें तो यह हो सकता है, परन्तु यदि शुभोपयोग को ही भला जानकर, उसी का साधन करें तो शुद्धोपयोग कैसे होगा? इसलिए मिथ्यादृष्टि का शुभोपयोग तो शुद्धोपयोग का कारण हो ही नहीं सकता; लेकिन सम्यग्दृष्टि को भी शुभोपयोग होने पर शुद्धोपयोग का पुरुषार्थ करने के अवसर अधिक हैं, इस अपेक्षा व्यवहार से शुभोपयोग को शुद्धोपयोग का कारण कहते हैं।