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निमित्तादि की अपेक्षा उपचार से मोक्षमार्ग कहा
मोक्षमार्ग नहीं हैं।
4. विपरीत मान्यता श्रद्धान निश्चय का रखना चाहिए और प्रवृत्ति व्यवहाररूप करना चाहिए ? - इसप्रकार दोनों नयों को अंगीकार करना ?
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हैं;
नय - रहस्य
ये वास्तव में
निराकरण एक ही नय का श्रद्धान करने से एकान्त मिथ्यात्व होता है; अतः निश्चय का निश्चयरूप और व्यवहार का व्यवहाररूप श्रद्धान करना योग्य है।
प्रवृत्ति में नय लागू नहीं होते, क्योंकि प्रवृत्ति तो द्रव्य की परिणति है । जिस द्रव्य की परिणति हो, उसे उसी की कहना निश्चयनय हैं और उसे अन्य द्रव्य की कहना, व्यवहारनय है । इसप्रकार कथन करने में अभिप्राय के अनुसार दोनों नय बनते हैं, प्रवृत्ति स्वयं में किसी नयरूप नहीं होती।
अतः निश्चयनय से जो निरूपण किया हो, उसे सत्यार्थ मानना चाहिए और व्यवहारनय से जो कहा गया हो, उसे असत्यार्थ मानकर, उसका श्रद्धान छोड़ना चाहिए ।
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5. विपरीत मान्यता इस नय से आत्मा ऐसा है और इस नय से ऐसा है अर्थात् आत्मा निश्चयनय से शुद्ध है, व्यवहारनय से अशुद्ध है ?
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निराकरण आत्मा तो जैसा है, वैसा ही है, उसमें नय द्वारा निरूपण करने का अभिप्राय पहचानना चाहिए। सिद्ध और संसारी को जीवत्वपने की अपेक्षा समान मानना तथा संसारी और सिद्ध पर्याय की अपेक्षा दोनों में अन्तर मानना चाहिए ।