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जैनाभास प्रकार का है। वीतराग भावरूप मोक्षमार्ग को मोक्षमार्ग कहना, निश्चय मोक्षमार्ग है और जो मोक्षमार्ग तो है नहीं, मोक्षमार्ग का निमित्त व सहचारी है, उसे उपचार से मोक्षमार्ग कहना व्यवहार मोक्षमार्ग है। ___ 2. विपरीत मान्यता - निश्चय-व्यवहार, दोनों समानरूप से उपादेय हैं?
निराकरण - निश्चयनय भूतार्थ है और व्यवहारनय अभूतार्थ है; अतः दोनों के स्वरूप में परस्पर विरोध है; इसप्रकार दोनों को एक जैसा उपादेय मानना मिथ्या है।
3. विपरीत मान्यता - सिद्ध समान शुद्ध आत्मा का अनुभव निश्चय और व्रत, शील, संयम आदिरूप प्रवृत्ति व्यवहार है?
निराकरण - यह मान्यता भी गलत है, क्योंकि किसी द्रव्यभाव का नाम निश्चय और किसी का नाम व्यवहार - ऐसा नहीं है। एक ही द्रव्य के भाव को उस स्वरूप ही निरूपण करना, निश्चय है और उपचार से उस द्रव्य के भाव को अन्य द्रव्य के भावस्वरूप निरूपण करना, व्यवहार है; अतः किसी को निश्चय मानना और किसी को व्यवहार मानना भ्रम है।
उपर्युक्त मान्यता में परस्पर विरोध भी है, क्योंकि अपने को शुद्ध मानने में व्रतादि करने की आवश्यकता ही नहीं है और यदि व्रतादि साधन द्वारा शुद्ध होना चाहते हैं तो वर्तमान में अपने को शुद्ध मानना मिथ्या है।
शुद्धात्मा का अनुभव, सच्चा मोक्षमार्ग है, इसलिए उसे निश्चय मोक्षमार्ग कहते हैं। यहाँ शुद्ध शब्द से आशय पर-भावों से भिन्न और स्वभाव से अभिन्न अर्थात् एकत्व-विभक्त स्वभाव से है। संसार अवस्था में सिद्ध अवस्था मानना, भ्रम है। व्रत-तप आदि को