SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 82 नय - रहस्य जिसकी करवट से संशय का, चिर - सिंहासन डोल चला रे । पाखण्डों के महल ढहाता, लो रोको तूफान चला रे ।। पूज्य गुरुदेवश्री की सत्य निष्ठा एवं मोक्षमार्ग की निश्छल निरूपणा ने लाखों पात्र जीवों को मोक्षमार्ग पर चलने की राह बताई है; यही कारण है कि वे युगपुरुष हम सबके आदर्श बन गये हैं। - 2. परीक्षा रहित आज्ञानुसारी धर्मधारक व्यवहाराभासी बहुत से लोग शास्त्रों में लिखी हुई बातों को बिना परीक्षा किये मानते हैं। परीक्षा किये बिना सत्य-असत्य का निर्णय नहीं होता और निर्णय किये बिना आज्ञा मानना, अन्य-मतियों द्वारा अपने-अपने शास्त्रों की आज्ञा मानने जैसा ही हुआ । यह तो पक्ष से आज्ञा मानना है। आज्ञा का सही आशय और प्रयोजन समझना ही आज्ञा मानना है। मोक्षमार्ग में देव - गुरु-धर्म तथा जीवादि सात तत्त्वों का निर्णय प्रयोजनभूत है, अतः इनकी परीक्षा अवश्य करना चाहिए तथा जिन ग्रन्थों में इनके सच्चे स्वरूप का वर्णन किया हो, उनमें कहे गए द्वीप + समुद्र, स्वर्ग-नरक आदि का स्वरूप ग्रन्थानुसार मानना चाहिए, क्योंकि इनकी परीक्षा करना सम्भव नहीं है। जो प्रयोजनभूत बातों को यथार्थ कहता है, वह अप्रयोजनभूत बातों को अन्यथा क्यों कहेगा ? जिनमत के प्रवक्ता वीतराग और सर्वज्ञ हैं, अतः उनके वचन असत्य नहीं हो सकते - ऐसा मानकर उनके सम्बन्ध में विकल्प नहीं करना चाहिए। प्रश्न – यदि जिनदेव के वचन अन्यथा नहीं हो सकते तो जीवादि तत्त्वों की परीक्षा करने की क्या आवश्यकता है? उत्तर - स्वयं विचार करके निर्णय किये बिना उनकी प्रतीति नहीं हो सकती, अतः इनके स्वरूप का विचार करके निर्णय करना आवश्यक
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy