SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनाभास 81 कुल 'के उस आचरण को छोड़ दें तो आप भी छोड़ देंगे। तथा वह जो आचरण करता है सो कुल के भय से करता है, कुछ धर्मबुद्धि से नहीं करता, इसलिए वह धर्मात्मा नहीं है। इसलिए विवाहादि कुल-सम्बन्धी कार्यों में तो कुलक्रम का विचार करना, परन्तु धर्म-सम्बन्धी कार्य में कुल का विचार नहीं करना । जैसा धर्म - मार्ग सच्चा है, उसीप्रकार प्रवर्तन करना योग्य है । ' आध्यात्मिक सत्पुरुष पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी ने कुल - परम्परा का त्याग कर, दिगम्बर सन्तों द्वारा प्ररूपित वीतराग धर्म को तर्क और अनुभूति की कसौटी पर परख कर अंगीकार करके, विगत बीसवीं शताब्दी में एक अनुपम कीर्तिमान स्थापित किया है। 0 पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा की गई इस आध्यात्मिक क्रान्ति का चित्रण बाबू जुगलकिशोरजी 'युगल' कोटा द्वारा 'लो रोको तूफान चला रे !' - इस शीर्षक से लिखित कविता में निम्न शब्दों द्वारा किया गया है बोली दुनिया - अरे-अरे रे ! मात-पिता का धर्म न छोड़ो, जिस कुल में यह जन्म लिया है, उस पथ से अब मुँह मत मोड़ो। हरी-भरी - सी कीर्तिलता है, दिग्-दिगन्त में व्याप्त तुम्हारी, 'यह लो यह लो सिंहासन लो' लेकिन रक्खो लाज हमारी ।। अरे ! तुम्हारे इस निश्चय से, भूतल पर भूचाल मचा रे ! पाखण्डों के महल ढहाता, लो रोको तूफान चला रे ।। उत्तर मिला - धर्म शिशु-जननी के अंचल में नहिं पलता है, और पिता की परम्परा से बँध कर धर्म नहीं चलता है ।। अरे! लोक की सीमाओं को, तोड़ धर्म का स्यन्दन' चलता, ज्ञान - चेतना के अंचल में, प्यारा धर्म निरन्तर पलता ।। 1. मोक्षमार्ग प्रकाशक, पृष्ठ 216 2. स्यन्दन = रथ -
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy