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________________ 79 जैनाभास उनकी यह मान्यता बनी है; अतः उनकी बात सत्य प्रतीत होती है, परन्तु उनका अभिप्राय, मोक्षमार्ग के विपरीत है; इसलिए उनके तर्क सम्यक् न होकर मिथ्या अर्थात् तर्काभास कहे जाते हैं। . प्रश्न - निश्चयाभास से बचने का क्या उपाय है? उत्तर - व्यवहारनय के कथनों का सर्वथा निषेध न करके उनका सही आशय (अभिप्राय) समझना चाहिए। अनुभूति में निश्चयनय की मुख्यता होने पर भी कथन में व्यवहारनय की मुख्यता होती है। अतः हमें लोक-व्यवहार में निश्चयनय की भाषा का प्रयोग करने से बचना चाहिए। प्रायः जो लोग, आपसी बोलचाल में भी हँसी-मजाक करते हुए निश्चय की भाषा बोलते हैं, उससे न केवल तत्त्व की अप्रभावना होती है, अपितु जिनवाणी की विराधना का महापाप लगता है। जनसामान्य तो व्यवहार की भाषा का ही प्रयोग जानता है और करता है, अतः निश्चयप्रधान भाषा का प्रयोग तत्त्व को समझाने के लिए ही किया जाना चाहिए। व्यवहार मोक्षमार्ग अर्थात् बाह्य-धर्माचरण भी हमें पापों से बचाकर, वीतरागता के पोषण में निमित्त होता है, अतः जीवन में भी यथाशक्ति नीतिमय धर्माचरण होना चाहिए। यदि कषाय की तीव्रता से कोई विशेष धर्माचरण न हो पाए तो इसे अपनी कमजोरी मानकर, उसके प्रति खेद होना चाहिए, लेकिन शास्त्रों के आधार से उसका पोषण नहीं करना चाहिए अर्थात् उसे उचित नहीं मानना चाहिए। . व्यवहाराभासी मिथ्यादृष्टि का स्वरूप निश्चयाभासी के विपरीत व्यवहाराभासी जीव पेकिंग को ही मूल पदार्थ मानकर उसमें सन्तुष्ट हो जाते हैं और वस्तु के मूल स्वरूप की प्राप्ति अर्थात् सच्चे मोक्षमार्ग से वंचित रहते हैं। व्यवहारनय के कथन
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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