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नय-रहस्य
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| अनुयोग | स्वच्छन्दता का अभिप्राय 3. चरणानुयोग • रात्रिभोजनत्याग और ब्रह्मचर्य तो छठवीं और
के निमित्त से सातवीं प्रतिमा में कहे हैं, इसलिए हम इनका होने वाला पालन क्यों करें? विपरीत . सम्यग्दर्शन के बिना व्रतादि होते ही नहीं तो
अभिप्राय अभी व्रताचरण का अभ्यास क्यों करें? 4. द्रव्यानुयोग | • देव-शास्त्र-गुरु तो परद्रव्य हैं; अतः उनका
के निमित्त से | अवलम्बन क्यों लिया जाए? होनेवाला • जिस समय जो पर्याय होनेवाली होती है, वही विपरीत होती है; अतः विषय-कषाय के परिणाम भी अभिप्राय अपनी क्रमबद्ध योग्यता से हो रहे हैं, इसमें हम
क्या करें?
उपर्युक्त प्रयोगों के आधार पर विपरीत अभिप्रायरूप स्वच्छन्दता की और भी अनेक मान्यताओं को समझा जा सकता है।
प्रश्न - क्या निश्चयाभासी को सदैव अशुभभाव ही होते हैं?
उत्तर - सदैव अशुभभाव या शुभभाव तो किसी भी जीव को नहीं होते। वे तो अन्तमुहूर्त में बदल जाते हैं। इससे भी यही सिद्ध होता है कि निश्चयाभास या स्वच्छन्दता, अभिप्राय में होती है; शुभाशुभभावों या बाह्य-आचरण में नहीं। .. प्रश्न - उपर्युक्त तालिका में दिए गए तर्क तो सही मालूम पड़ते ' हैं, फिर आप उन्हें स्वच्छन्दता क्यों कह रहे हैं? ।
- उत्तर - जैनाभासियों के तर्क भी शास्त्राधार से ही होते हैं, क्योंकि जिनवाणी पढ़कर उसका विपरीत अभिप्राय ग्रहण करने से