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________________ जैनाभास 77 किसी प्रकार का आभास कैसे कहा जा सकता है? प्रश्न - निश्चयाभासी, अध्यात्म के माध्यम से स्वच्छन्द होकर अशुभाचरण में प्रवृत्ति करते हैं, अतः आप अशुभाचरण को निश्चयाभास - क्यों नहीं कहते? उत्तर - स्वच्छन्दता का पोषण भी अभिप्राय का दोष है, आचरण का नहीं, क्योंकि जिनागम के आधार पर विषय-कषायों को पुष्ट करने की अर्थात् दोषरूप न मानकर उचित ठहराने की वृत्ति ही निश्चयाभास है। यद्यपि प्रायः स्वच्छन्दता का पोषण अध्यात्म की आड़ में देखा जाता है; परन्तु विपरीत अभिप्राय ग्रहण करके, यह जीव चारों अनुयोगों के माध्यम से स्वच्छन्दता का पोषण कर सकता है - यह बात निम्न तालिका से स्पष्ट समझी जा सकती है - अनुयोग | स्वच्छन्दता का अभिप्राय 1. प्रथमानुयोग | • भरत-बाहुबली, सम्यग्दृष्टि होकर भी युद्ध कर के निमित्त से | सकते हैं तो हम यदि आपस में लड़ें तो हमारा होने वाला __ क्या दोष है? विपरीत • जब भरत चक्रवर्ती छह खण्ड पर राज्य करते हुए अभिप्राय और 96 हजार रानियों के साथ भोग भोगते हुए भी सम्यग्दृष्टि रह सकते हैं तो हम भी भोग भोगते हुए सम्यग्दृष्टि क्यों नहीं रह सकते? 2. करणानुयोग | • सब जीव आयुकर्म के क्षय से मरते हैं तो हमें के निमित्त से | उन्हें मारने में हिंसा का दोष क्यों लगेगा? . होने वाला |. स्त्री/पुरुष वेदकर्म के उदय से विषय-वासना विपरीत आभप्राय होती है, अतः इसमें हमारा क्या दोष है? ..
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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