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________________ जैनाभास . . 75 होती है; अतः उसके माध्यम से वस्तु की पहचान करके और उसे सुरक्षित रखकर, उपभोग के समय पेकिंग हटा दी जाती है। लोक में प्रत्येक वस्तु के उपभोग की यही पद्धति है। जैसे, केला खाने के पहले हम उसका छिलका हटा देते है। गेहूँ के ऊपर का भूसा हटाकर, हम उसके दाने का उपयोग करते हैं। इसीप्रकार अन्यत्र समझ लेना चाहिए। लोक में हम प्रायः पदार्थ और पेकिंग का अन्तर समझते हैं और दोनों का यथायोग्य उपयोग करते हैं, किन्तु कभी-कभी कुछ लोग या तो पेकिंग को अनुपयोगी मानकर, उसका सर्वथा निषेध करने लगते हैं (निश्चयाभासी के समान) या मूल पदार्थ को भूलकर, पेकिंग में ही सन्तुष्ट हो जाते हैं (व्यवहाराभासी के समान) अथवा दोनों को एक जैसा मानकर, उनसे एक समान व्यवहार करना चाहते हैं। (उभयाभासी के समान) धर्मक्षेत्र में होने वाली इन्हीं भूलों को क्रमशः निश्चयाभास, व्यवहाराभास या उभयाभास कहते हैं। .. लोक में तो कोई अति मन्दबुद्धि ही ऐसी भूलें करता है, परन्तु . मोक्षमार्ग में प्रयोजनभूत तत्त्वों के बारे में जिनागम का अभ्यास करने पर भी ऐसी भूलें क्यों हो रही हैं - यह विचारणीय है। निश्चयाभासी मिथ्यादृष्टि का स्वरूप ___ यदि कोई पेकिंग को अनावश्यक समझकर, उसका सर्वथा निषेध करे तो यह मान्यता निश्चयाभास जैसी होगी। इसीप्रकार निश्चयनय के कथन को ही सर्वथा सत्य मानकर, व्यवहारनय की विषय-वस्तु का और उसके कथन का सर्वथा निषेध करना, निश्चयाभास है। इसी वृत्ति को आधार बनाकर पण्डित टोडरमलजी ने मोक्षमार्ग प्रकाशक के सातवें अधिकार में निश्चयाभासी की मान्यताओं का उल्लेख किया है,.. " जो इसप्रकार हैं - ..
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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