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________________ निश्चयनय और व्यवहारनय 71 अभ्यास-प्रश्न 1. निश्चय और व्यवहारनयों की परिभाषायें लिखते हुए उनके लौकिक एवं आगम में समागत प्रयोजन बताते हुए उनका स्वरूप स्पष्ट कीजिए । 2. निश्चय और व्यवहारनयों की भूतार्थता और अभूतार्थता की समीक्षा कीजिए । 3. निश्चय और व्यवहारनय में परस्पर सम्बन्धों को प्रयोग पद्धति से समझाइए। 4. व्यवहारनय के ग्रहण और त्याग की प्रक्रिया स्पष्ट कीजिए । 5. व्यवहारनय की हेयोपादेयता की समीक्षा कीजिए । केवलज्ञानमूर्ति यह आतम नय-व्यवहार कला द्वारा । वास्तव में सम्पूर्ण विश्व का, नितप्रति है जाननहारा ।। मुक्तिलक्ष्मी रूपी कामिनी के कोमल वदनाम्बुज पर । काम-क्लेश, सौभाग्य चिह्नयुत, शोभा को फैलाता है ।। श्री जिनेश ने क्लेश और रागादिक मल का किया विनाश। निश्चय से देवाधिदेव वे, निज स्वरूप का करें विकास ।। नियमसार कलश, 272
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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