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निश्चयनय और व्यवहारनय
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अभ्यास-प्रश्न
1. निश्चय और व्यवहारनयों की परिभाषायें लिखते हुए उनके लौकिक एवं आगम में समागत प्रयोजन बताते हुए उनका स्वरूप स्पष्ट कीजिए । 2. निश्चय और व्यवहारनयों की भूतार्थता और अभूतार्थता की समीक्षा कीजिए ।
3. निश्चय और व्यवहारनय में परस्पर सम्बन्धों को प्रयोग पद्धति से समझाइए। 4. व्यवहारनय के ग्रहण और त्याग की प्रक्रिया स्पष्ट कीजिए । 5. व्यवहारनय की हेयोपादेयता की समीक्षा कीजिए ।
केवलज्ञानमूर्ति यह आतम नय-व्यवहार कला द्वारा । वास्तव में सम्पूर्ण विश्व का, नितप्रति है जाननहारा ।। मुक्तिलक्ष्मी रूपी कामिनी के कोमल वदनाम्बुज पर । काम-क्लेश, सौभाग्य चिह्नयुत, शोभा को फैलाता है ।।
श्री जिनेश ने क्लेश और रागादिक मल का किया विनाश। निश्चय से देवाधिदेव वे, निज स्वरूप का करें विकास ।। नियमसार कलश, 272