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जिनागम के अनमोल रत्न ]
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रूप समुद्र में सौभाग्य से प्राप्त हुआ अमूल्य बोधिस्त्न (रत्नत्रय) नष्ट हो जाने पर पुनः सरलता से प्राप्त नहीं हो सकता ।
यहाँ संसार में सब ही वस्तुओं का समूह सुलभ है। अन्य की तो बात ही क्या, किन्तु यहाँ धरणेन्द्र, चक्रवर्ती और इन्द्र को अभीष्ट आधिपत्यउनकी विभूति तथा उत्तम कुल, विशिष्ट सामर्थ्य और स्वतन्त्र स्त्री आदि भी सुलभता से प्राप्त हो जाती हैं। यदि यहाँ कोई दुर्लभ है तो वह एक बोधिल ही है ।।242-43 ।।
आयुः सर्वाक्ष सामग्री बुद्धिः साध्वी प्रशान्तता । यत्स्यात्तत्काकतालीयं मनुष्यत्वेऽपि देहिनाम् । । 235 ।।
मनुष्य पर्याय को पाकर भी जो लम्बी आयु सब इन्द्रियों की परिपूर्णता, उत्तमबुद्धि और कषायों की उपशान्ति होती है, वह काकतालीय न्याय से ही प्राप्त होती है । 1235।।
काकतालीयकन्यायेनोपलब्धं यदि ..: त्वया।
तत्तर्हि सफलं कार्यं कृत्वात्मन्यात्मनिश्चयम् ।।248 ।।
हे भव्य ! यदि वह काकतालीय न्याय से तुझे प्राप्त हो गई है, तो तू आत्मा में आत्मा का निश्चय करके शरीरादि बाह्य पदार्थों से उसकी भिन्नता का निश्चय करके - उसे सफल कर ले |
यतित्वं जीवनोपायं कुर्वन्तः किं न लज्जिताः । मातुः पणमिवालम्ब्य यथा केचिद्गतघृणाः । ।345 ।।
जिस प्रकार कितने ही निर्दय-निर्लज्ज मनुष्य माँ के मूल्य का आलम्बन लेकर उसे वेश्या बनाकर आजीविका को सिद्ध करते हैं और इसके लिये लज्जित नहीं होते हैं, उसी प्रकार कितने ही निर्दय अपने आप पर भी दया न करने वाले मनुष्य मुनिलिंग को आजीविका का साधन बनाकर लज्जित क्यों नहीं होते हैं? ।