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[जिनागम के अनमोल रत्न
क्रुद्ध कृष्ण सर्प, दुष्ट सिंह, मदोन्मत्त हाथी को पकड़ना शक्य हो सकता है लेकिन दुष्ट स्त्री के चित्त को पकड़ पाना शक्य नहीं है । 1960
स्त्री के वचन में अमृत भरा रहता है और हृदय में विष भरा होता है । 1964 ।। .
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महावली मनुष्य समुद्र को पार करके जा सकता है किन्तु मायारूपी जल से भरे स्त्रीरूपी समुद्र को पार नहीं कर सकता।।968।।
रत्नों से भरी किन्तु व्याघ्र के निवास से युक्त गुफा और मगरमच्छ से भरी सुन्दर नदी की तरह स्त्री मधुर और रमणीय होते हुए भी कुटिल और सदोष होती है।।969 ।।
मनुष्य का ऐसा 'अरि' दूसरा नहीं है इसलिये 'नारी' कहते हैं । पुरूष को सदा प्रमत्त करती है इसलिये उसे 'प्रमदा' कहते हैं । 1972 ||
पुरूष के गले में अनर्थ लाती है अथवा पुरूष को देखकर विलीन होती है इसलिये 'बिलया' कहते हैं । पुरूष को दुख से योजित करती है इससे 'युवती' और 'योषा' कहते हैं । 1973 ।।
उसके हृदय में धैर्यरूपी बल नहीं होता अतः वह 'अबला' कही जाती है । कुमरण का कारण है अत: 'कुमारी' कहते हैं । 1974 ।।
पुरूष पर आल-दोषारोप करती है इसलिये 'महिला' कहते हैं। इस प्रकार स्त्रियों के सब नाम अशुभ होते हैं । 1975 ।।
'कदाचित् चन्द्रमा उष्ण हो जाये, सूर्य शीतल हो जाये, आकाश कठोर हो जाये, किन्तु कुलीन स्त्री भी निर्दोष और भद्रपरिणामी नहीं होती। 1984।। बालत्तणे कदं सव्व मेव जदि णास संमरिज्ज तदो । अप्पाणम्मि वि गच्छे णिव्वेदं किं पुण परंमि ॥1019 ॥
यदि बचपन में किये गये कर्मों को याद किया जाये तो दूसरे की तो बात ही क्या, अपने से ही वैराग्य हो जाये ।