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जिनागम के अनमोल रत्न]
[77 जिस विशुद्ध लेश्या वाले के हृदय में ज्ञानरूपी दीपक जलता है उसको जिन भगवान के द्वारा कहे गये आगम में प्रवृत्त रहते हुए मैं संसार की भंवर में गिरकर नष्ट हो जाऊंगा', ऐसा भय नहीं रहता।।766।।
तीनों लोक और जीवन में से एक को स्वीकार करो? ऐसा देवों के द्वारा कहे जाने पर कौन प्राणी अपना जीवन त्यागकर तीनों लोकों को ग्रहण करना चाहेगा? अतः इसी प्रकार सभी प्राणियों के जीवन का मूल्य तीनों लोक है, अतः जीव का घात करने वालों को तीनों लोकों के घात करने के समान दोष होता है। 1781-82।।
कामरूपी सर्प मानसिक संकल्परूप अण्डे से उत्पन्न होता है। उसके राग-द्वेष रूप दो जिह्वायें होती हैं जो सदा चलती रहती हैं। विषयरूपी विल में उसका निवास है,। रति उसका मुख है। चिन्तारूप अतिरोष है। लज्जा उसकी कांचली है जिसे वह छोड़ देता है। मद उसकी दाढ़ है। अनेक प्रकार के दुख उसका जहर है। ऐसे कामरूपी सर्प से डंसा हुआ मनुष्य नाश को प्राप्त होता है।।884-85।।
स्त्री का स्वरूप जो स्त्रियों का विश्वास करता है वह व्याघ्र, विष, कांटे, आग, पानी, मत्त हाथी, कृष्ण सर्प और शत्रु का विश्वास करता है अर्थात् स्त्री पर विश्वास इनकी तरह भयानक है।।946।।
लोक में जितने तृण हैं, जितनी लहरें हैं, जितने वालु के कण तथा जितने रोम हैं, उनसे भी अधिक स्त्रियों के मनों-विकल्प हैं ।।956।।
__ आकाश की भूमि, समुद्र का जल, समुरू और वायु का भी परिमाण मापना शक्य है, किन्तु स्त्रियों के चित्त का मापना शक्य नहीं है ।।957।।
जैसे बिजली, पानी का बुलबुला और उल्का बहुत समय तक नहीं रहते, वैसे ही स्त्रियों की प्रीति एक पुरूष में बहुत समय तक नहीं रहती।।958।।